Samudrik Gyan Panchangule Sadhana

-1%

Samudrik Gyan Panchangule Sadhana

Samudrik Gyan Panchangule Sadhana

120.00 119.00

In stock

120.00 119.00

Author: S.M. Bahal

Availability: 5 in stock

Pages: 224

Year: 2013

Binding: Paperback

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Randhir Prakashan

Description

सामुद्रिक ज्ञान और पंचांगुली साधना

‘Palmistry is an organised knowledge’ पाश्चात्य विद्वान स्पेन्सर का कथन सत्य के कितना समीप है, यह बात कोई हस्तरेखा विद्वान ही समझ सकता है।

ईश्वर अथवा प्रकृति ने अनेक गोपनीय संकेत हाथ की इन टेड़ी-मेड़ी रेखाओं में छिपा दिये हैं। मानव जिस प्रकार जंगलों से निकलकर आज गलियों में आ गया है। यह उसके विकास की एक लम्बी यात्रा थी।

इसी प्रकार ‘सामुद्रिक शास्त्र’ पहले केवल ऋषि-मुनियों का ही था, शनैः-शनेः समाज के मध्य से गुजरता हुआ आज फुटपाथ तक आ गया है। आज हस्तरेखा विज्ञान का चलन सबसे अधिक है। कॉलिज का होस्टल हो अथवा किसी व्यापारी का व्यापार स्थल, हस्तरेखा देखने का चलन सब स्थानों पर समान रूप से पाया जाता है।

प्रश्नकर्त्ता सबसे पहले हाथ आगे करता है, फिर जन्म कुण्डली निकालता है। प्रश्न कुण्डली का क्रम सबसे बाद में आता है।

मस्तिष्क के आदेशों, निर्देशों का पालन सबसे पहले हाथ करता है। यह इतनी शीघ्रता से होता है कि मशीन भी पीछे रह जाती है। शरीर की हर क्रिया को मस्तिष्क संभालता है। डाक्टर भी ‘फिजिकल डैथ’ से अधिक महत्व ‘क्लिनिकल डैथ’ (मस्तिष्क की मृत्यु) को देते हैं। मस्तिष्क और हाथ का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। प्रारब्ध, कर्म के साथ-साथ मस्तिष्क भी रेखाएं घटाने और बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान करता है।

शिशु की जीवन के लिए यात्रा माता के गर्भ से प्रारम्भ होती है। नक्षत्र, लगन, हाथ की रेखाओं के अनुसार उसका जीवन बनता है। प्रकृति का यह कैसा विचित्र सिद्धांत है, जिस नक्षत्र में गर्भाधान हुआ है, उसी नक्षत्र में शिशु का जन्म होता है। मान लें रोहिणी नक्षत्र में गर्भाधान हुआ हैं तो ठीक 280 दिन लगभग छः घंटे बाद उस शिशु का जन्म होगा। जन्म होने के उपरान्त लगभग इतने ही समय वह माता का स्तनपान करेगा। इससे दुगने समय के उपरान्त उस शिशु का मस्तिष्क, मांस-मज्जा पुष्ट होकर अपने भविष्य की तैयारी और कर्मों को भोगने में जुट जाता है।

अपनी बात को और आगे बढ़ाने से पहले ब्रह्मा द्वारा रचित और महर्षि नारद द्वारा पढ़ी गयी हस्तरेखा के विषय में एक प्रसिद्ध दृष्टांत प्रस्तुत है।

एक साधु तपोभूमि हरिद्वार में नियमित भीख मांगने आता था। वह भीख मांगने के साथ-साथ यह भी कहता जाता था, “हाय ! तू गिर क्यों न पड़ी ?”

हरिद्वार निवासी न तो इस प्रश्न को समझ पाते थे और न ही उन्हें इसका कोई समुचित उत्तर ही सूझता था। साधु का यह वाक्य बेतरह चर्चा का विषय बन गये।

एक दिन वह साधु फिर भीख मांगता हुआ आया और कहने लगा, “हाय ! तू गिर क्‍यों न पड़ी ?” उसकी यह बात सुनकर एक संत कुटिया से बाहर आया और बोला, “महाराज ! वह तो चल चुकी।”

यह सुनकर साधु पथरा गया। उसे अपने प्रश्न का उचित उत्तर मिल गया था। वह वहां से चला गया।

इसके बाद किसी ने उसे वहां भीख मांगते नहीं देखा।

कई माह बीत गए। कुछ निवासी उस संत के पास गये और पूछा, “महाराज ! उस दिन आपने उसे ऐसा क्या उत्तर दिया, जो उसने इधर आना ही बंद कर दिया।

वह संत बोले, “नगर निवासियों ! वह साधु भीख मांगना अच्छा नहीं समझता था, पर भाग्य के सामने विवश था, इसलिए ब्रह्मा से बार-बार प्रश्न करता था कि जब वह उसकी ‘भाग्य रेखा’ और ‘कर्म रेखा’ बना रहे थे, तब कलम गिर क्यों न पड़ी ? जो आज मुझे इस

अपमानजनक राह पर चलना पड़ा और यह निकृष्ट कार्य करना पड़ रहा है। मैंने तो उसे केवल इतना बतला दिया था, “अरे ! कलम तो तब तक चल चुकी थी।’’ वह अपने भिक्षाटन का कारण समझ गया, अस्तु चला गया।

करतल पर अंकित रेखाएं और कुछ नहीं केवल आपके भूत, भविष्य और वर्तमान का हिसाब हैं, जो ब्रह्मा ने अपनी संकेतात्मक भाषा में लिख दिया है।

अनुक्रमणिका
विषय पृष्ठ संख्या
1. विषय प्रवेश है 9
2. हाथ का आकार-प्रकार 14
3. चित्र-हाथ में जानने योग्य प्रमुख बातें 15
4. चित्र-विभिन्‍न प्रकार के हाथों का वर्गीकरण 21
5. अंगूठा तथा अन्य कुछ लक्षण 25
6. नाखून 28
7. चित्र-विभिन्‍न प्रकार के नाखून और अंगुलियां 29
8. अंगुलियां 31
9. चित्र-अंगुलियों के विभिन्‍न प्रकार 32
10. ग्रह क्षेत्र 36
11. चित्र-हाथ में विभिन्‍न ग्रहों की स्थिति 37
12. हाथ की रेखाएँ 40
13. चित्र-हाथ में विभिन्‍न रेखाओं की स्थिति 41
14. जीवन रेखा 42
15. भाग्य रेखा 53
16. मस्तिष्क रेखा 63
17. हृदय रेखा 74
18. सूर्य रेखा 82
19. स्वास्थ्य रेखा 86
20. विवाह रेखा 90
21. सन्तान रेखा 97
22. अन्य रेखाएं 101
23. यात्रा रेखाएं 102
24. शीर्ष रेखा 103
25. जिगर रेखा 103
26. प्रभावी रेखाएं 103
27. मणिबन्ध 104
28. अतीन्द्रिय ज्ञान रेखा 104
29. काम रेखा 104
30. प्रवर्त रेखा 105
31. ज्ञान रेखा 105
32. धन प्राप्ति रेखा 105
33. मस्तक रेखाएँ 106
34. चित्र-चेहरे पर मस्तक रेखाएँ 107
35. चन्द्र रेखा, मंगल रेखा 108
36. शंख, चक्र, सीप 109
37. हाथ पर पाये जाने वाले चिन्ह 111
38. पुरुष शरीर लक्षण 112
39. जंघा, बाल 112
40. चित्र-पुरुष शरीर लक्षण (जंघा-पिंडली) 113
41. कमर, नाभि 114
42. चित्र-पुरुष शरीर लक्षण (कमर) 115
43. कुक्षि, पैर 116
44. चित्र-विभिन्‍न प्रकार के पैर 117
45. उदर (पेट) 118
46. चित्र-पुरुष पेट लक्षण 119
47. वक्ष, स्कन्ध (कन्धे) 120
48. चित्र-पुरुष वक्ष लक्षण 121
49. कक्षा (कांख), बाहु (भुजा) 122
50. चित्र-पुरुष भुजा लक्षण 123
51. पृष्ठ (पीठ) 124
52. स्त्री लक्षण 125
53. कण्ठ, चिबुक तथा हनु 125
54. चित्र-स्त्री शरीर लक्षण (कण्ठ) 126
55. चित्र-स्त्री शरीर लक्षण (चिबुक) 127
56. कपोल, मुख 128
57. चित्र-स्त्री मुखाकृति लक्षण 129
58. चित्र-स्त्रियों के अधर लक्षण 131
59. अधर, ओष्ठ, दांत 133
60. चित्र-विभिन्‍न प्रकार के दांत 134
61. जिह्वा, तालु 135
62. नासा (नाक), छींक 138
63. चित्र-विभिन्‍न प्रकार की नाक 139
64. नेत्र 140
65. चित्र-विभिन्‍न प्रकार की आंखें 141
66. आंखों की बरौनी 143
67. कर्ण (कान) 144
68. सर्वांग लक्षण 145
69. ठोड़ी और कंठ के बीच लटकता मांस 146
70. चिपका तालुवा 146
71. चित्र-शरीर सर्वांग लक्षण (एक) 147
72. बाहर निकला कंठ, बदन पर बाल 148
73. छातियां, पीठ पर मस्सा, सुन्दर होंठ 149
74. चित्र-शरीर सर्वांग लक्षण (दो) 150
75. पतले होंठ, रोमहीन छाती, गाल पर मस्सा 151
76. पतला पेट, पेट पर सलवटें, पेट या छाती पर तिल और मस्सा 152
77. छोटी और मोटी गर्दन, पतली लम्बी गर्दन गर्दन के पीछे सलवटें, उठा हुआ सीना 153
78. चित्र-शरीर सर्वांग लक्षण (तीन) 154
79. भरी नाभि, उभरी नाभि, मोटा पेट 155
80. तालुआ, गहरी नाभि, सूखी हड़ीली अंगुलियां 156
81. अधिक अंगुलियां, भारी होंठ 157
82. ऊपर के दांत, दबा हुआ, उठा हुआ दांत 158
83. उठा हुआ कुब्ब, संचित धन 159
84. चित्र-शरीर सर्वांग लक्षण (चार) 160
85. हाथ में तिल, भोगेन्द्रिय, आंखों की पुतली 161
86. पतली जंघा, स्थूल जंघा, भोगेन्द्रिय पर तिल, झुकाव 162
87. मोटी टांगें, लंगड़ी टांगे 163
88. स्त्रियों के मुख पर मूछों के चिन्ह 163
89. बड़े दांत, उठे दांत, टेढ़े-मेढ़े दांत, दांतों में छिद्र 164
90. नासिका में छोटे छिद्र, लम्बी ठोड़ी 165
91. ठोड़ी में गड्ढा, बुद्धि, सुखस्थान, स्फुरण 166
92. चरण पादुका लक्षण 167
93. शुभ-अशुभ चिन्ह 174
94. चिन्ह एक दृष्टि में 184
95. पंचागुली साधना 193
96. काल ज्ञान मंत्र 215
97. अन्त में 221

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2013

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Samudrik Gyan Panchangule Sadhana”

You've just added this product to the cart: