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Description
संस्कृत साहित्य में स्त्री विमर्श
भारतीय परंपराओं का अनोखापन उनकी गत्यात्मकता, विविधता और विपुलता में है। संस्कृत साहित्य इस गत्यात्मकता, विविधता और विपुलता को जानने के लिए प्रामाणिक स्रोत्र है और वह भारतीय संस्कृति की कम-से-कम तीन सहस्रब्दियों की विकास यात्रा का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। इन सहस्राब्दियों में नारी की बदलती हुई छवि भी हम इसमें देखते हैं । नारी को लेकर परस्पर विरोधाभासी दृष्टियाँ और मंतव्य संस्कृति साहित्य में मिलते हैं, और नारी जीवन की वास्तविकताओं के बहुविध चित्र भी। नारी के इस वैविध्यमय संसार से परिचय आज के सन्दर्भों में नारी की नियति, संघर्ष और भविष्य को समझने में निश्चय ही सहायक होगा। इस पुस्तक में संकलित लेखों से स्पष्ट है कि वैदिक काल में नारी का अत्यंत गारिमामय स्थान समाज में था। वैदिक ऋषियों के स्त्री विषयक मतव्यों में भी इस गारिमा की स्वीकृति है। परवर्ती काल में पुरुषों के बढ़ते वर्चस्व में स्त्री का स्थान नहीं रहा। पर बुद्धिजीवियों, चिंतकों और कवियों ने स्त्रीमन को गहरी समझ और संवेदना से परखा है। संस्कृत के महाकवि न केवल अपने समय से आगे लगते हैं, वे स्त्री विषयक जो अग्रगामी सोच प्रस्तुत करते हैं, वह आज भी विचारणीय है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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