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सरदार पटेल तथा भारतीय मुसलमान
भारत के प्रथम गृहमंत्री लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल पर उनके जीवन के अंतिम वर्षो में और उनकी मृत्यु के बाद तो और भी ज्यादा यह आरोप चस्पां होता गया है कि उनकी सोच में मुस्लिम-विरोध का पुट मौजूद था। इस पुस्तक में देश के जाने-माने बौद्धिक डॉ. रफीक जकरिया ने बिना किसी आग्रह-पूर्वाग्रह के इस आरोप की असलियत की जाँच-पड़ताल की है और इसकी तह तक गए हैं।
सरदार पटेल के तमाम बयानात, उनके राजनीतिक जीवन की विविध घटनाओं और विभिन्न दस्तावेजों का सहारा लेते हुए विद्वान लेखक ने यहाँ उनकी सोच और व्यवहार का खुलासा किया है। इस खोजबीन में उन्होंने यह पाया है कि देश-विभाजन के दौरान हिंदू शरणार्थियों की करुण अवस्था देखकर पटेल में कुछ हिंदू-समर्थक रुझानात भले ही आ गए हों पर ऐसा एक भी प्रमाण-नहीं मिलता, जिससे यह पता चले कि उनके भीतर भारतीय मुसलमानों के विरोध में खड़े होने की कोई प्रवृत्ति थी। महात्मा गांधी के प्रारंभिक सहकर्मी के रूप में ‘सरदार पटेल ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के जैसे शानदार उदाहरण गुजरात में प्रस्तुत किए थे उन्हें अंत तक बनाए रखने की प्रबल भावना उनमें बार-बार जाहिर होती रही। मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग का कड़ा विरोध करने का उनका रवैया उनके किसी मुस्लिम विरोधी रुझान को व्यक्त करने के बजाय उनकी इस खीझ को व्यक्त करता है कि लाख कोशिशों के बावजूद भारत की सामुदायिक एकता को वे बचा नहीं पा रहे हैं। कूटनीतिक व्यवहार की लगभग अनुपस्थिति और खरा बोलने की आदतवाले इस भारतीय राष्ट्र-निर्माता की यह कमजोरी भी डॉक्टर जकरिया चिन्हित करते हैं कि मुस्लिम-लीग के प्रति अपने विरोध की धार उतनी साफ न रख पाने के चलते कई बार उन्हें गलत समझ लिए जाने की पूरी गुंजाइश रह जाती थी।
स्वतंत्रता के इस स्वर्ण जयंती वर्ष में सरदार वल्लभ भाई पटेल के विषय में व्याप्त कई सारी गलतफहमियाँ इस पुस्तक से काफी कुछ दूर हो जाएँगी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
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