Satrupa

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Author: Shivendra

Availability: 5 in stock

Pages: 160

Year: 2025

Binding: Paperback

ISBN: 9789349180291

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

सतरूपा

समकालीन लेखन में शिवेन्द्र की विशिष्ट पहचान ऐसे कहानीकार के रूप में है जो चित्र-विचित्र घटनाओं वाली पुराकथाओं और परीकथाओं के ढब-ढाँचे में ठेठ आधुनिक जीवन के प्रश्नों और संकटों से हमें रू-ब-रू कराता है। पिछले लगभग सवा सौ सालों से हिन्दी कहानी अपनी बात कहने के लिए जिस ‘वेरिसिमिलीट्यूड’ पर, विश्वसनीय अंकन की जिस विधि पर भरोसा करती आई है, उसे तोड़ या छोड़ कर शिवेन्द्र एक वयस्क आधुनिक पाठक को झटका देते हैं; ऐसा लगता है कि वे उसे एकबारगी आधुनिक के मुक़ाबले पुरातन या वयस्क के मुक़ाबले बालसुलभ कथा-आस्वाद की ओर ले जाना चाहते हैं, लेकिन उनके द्वारा सम्बोधित सवाल इस भ्रम की गुंजाइश नहीं रहने देते। उनके यहाँ अपनी जाति बताकर प्यार से वंचित हो जाने वाले और सीवर में ही ज़िन्दगी खपा देने वाले दलित हैं; ‘किसी ऊबे हुए बन्दर की तरह फ़ेसबुक की एक दीवाल से दूसरी दीवाल पर यूँ ही कूदने’ वाले बेरोज़गार हैं; गेम न खेलने पर गोली मार देने वाले कमांडोज़ से डर कर अपने-अपने मोबाइल में घुसे, अपने आसपास की दुनिया से नावाक़िफ़ लोग हैं; आज़ादी प्रतीत होने वाली नई ग़ुलामी है; ऐसे चुनाव हैं जिनमें जनता उन्हीं को चुनती है जिनकी सरकार बनाने का ठेका बड़ी कम्पनियों ने लिया है; ‘बिना कुछ सोचे-समझे ऐसी चीज़ों को पाने में नष्ट होती’ ज़िन्दगियाँ हैं ‘जिनकी असल में कोई ज़रूरत ही नहीं’; और सबसे बड़ी बात, दूसरों की आज़ादी छीनने वालों और आज़ादी चाहने वालों के बीच का संघर्ष है जिसमें एक ओर तानाशाहों से लेकर उनके पक्ष के विचारक, हत्यारे और आज की दुनिया में मसीहा की तरह पूजे जानेवाले धनकुबेर तक हैं, तो दूसरी ओर बेरोज़गार, मज़लूम और अपने को बेचने के लिए तैयार न होने वाले चैतन्य लोग। हमारे इस वर्तमान को शिवेन्द्र जिस कल्पनाशीलता के साथ कहानी में लाना सम्भव करते हैं, वह आपको बार-बार चकित करती है और आप साश्चर्य कहानी के इस आदिम गुण की वापसी के साक्षी बनते हैं। वे निस्सन्देह हमारे समय के सबसे उर्वर रचनात्मक मस्तिष्कों में से एक हैं।

—संजीव कुमार

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2025

Pulisher

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