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सत्संग सुधा
निवेदन
कहते हैं, जब सुकरात ने विषपान किया, उस समय कारावास के अधिकारी ने उन्हें एकांत में रहने के निर्देश दिए। उसका कहना था कि बोलने से विष का असर कम हो जाएगा और उसका प्रभाव अत्यंत पीड़ादायक होगा। ऐसे में दोबारा विषपान करना पड़ेगा। सुकरात उस समय अपने शिष्यों के साथ जीवन के प्रश्नों पर वार्ता कर रहे थे। शिष्य जानते थे कि यह अवसर अब फिर मिलने वाला नहीं है। और सुकरात चाहते थे कि अपना समूचा ज्ञान शिष्यों के पात्रों में उंडेल दें। इसलिए सुकरात ने जेल के अधिकारी को संदेश भेजा-‘जीवन के प्रश्नों पर की जाने वाली इस तरह की बातचीत के लिए मैं कैसी भी पीड़ा सहने को तैयार हूं।’ और उन्होंने यह पीड़ा सही।
सुकरात के ये वचन सत्संग की महिमा की ओर संकेत करते हैं। ‘विवेक’ किसी भी मूल्य पर मिले, वह सस्ता है, क्योंकि, इसके बिना जीवन में उपलब्धि नहीं होती। तुलसीदास जी ने विवेक प्राप्ति का प्रमुख साधन सत्संग को माना है-‘बिनु सत्संग विवेक न होई।’
सुंदरकाण्ड में लंकिनी द्वारा कहे गए ये शब्द सत्संग की महिमा पर ही तो प्रकाश डालते हैं –
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिअ तुला इक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सत्संग।।
आनंद की उपलब्धि के बाद सुख निरर्थक हो जाता है। इस प्रकार आनंद की राह सत्संग से होकर ही तो जाती है। सत्संग का अर्थ है सत्य का सामीप्य या सत् को जानने का प्रयास। आजकल टीवी संस्कृति के पनपने के बाद सत्संग के भी मायने बदल गए हैं। कई चैनल संतों की कथाओं तथा उनके उपदेशों को ‘रिले’ कर रहे हैं और उन्हें सुनकर लोग सामूहिक सत्संग में जाने के प्रति उदासीन हो रहे हैं। ‘कुछ न करने से, कुछ करना बेहतर है,’ इस कहावत को स्वीकारते हुए तो यह ठीक-सा लगता है, लेकिन इससे सत्संग का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता। सत्संग का अर्थ है सद्गुरु से वार्तालाप, अनुभवी साधक के अनुभवों का श्रवण, सद्शास्त्रों का बिना किसी सांप्रदायिक व्याख्या के निष्पक्ष भाव से श्रवण। इससे जीवन में बदलाव आता है। एक क्रांति पैदा होती है सत्संग से। सत्संग का अर्थ है सत्य की खोज। इस पुस्तक में आपको जीवन के परमसत्य की झलक प्राप्त होगी।
– गंगा प्रसाद शर्मा
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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