Seedhi Rekha

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Seedhi Rekha

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Author: Gangadhar Gadgil

Availability: 5 in stock

Pages: 252

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9789355180216

Language: Hindi

Publisher: Bhartiya Jnanpith

Description

सीधी रेखा

आधुनिक मराठी साहित्य में गंगाधर गाडगिल का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है। वे पाँचवें दशक से आरंभ होने वाले कहानी कि क्षेत्र में नये युग के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने कहानी के पारम्परिक सांचे को नकार कर उसे नयी संवेदनशीलता और कलात्मकता यथार्थवत्ता प्रदान की है। इस नयी संवेदनशीलता के उदय के साथ सहज ही में जो अन्य संदर्भ आ जुड़े हैं, वे हैं—महायुद्ध के परिणामस्वरूप सर्वग्रासी विनाश और उससे उपजे जीवन-मूल्य, औद्योगीकरण, यंत्र-संस्कृति, नये आर्थिक-सामाजिक अन्तर्विरोध, महानगरीकरण आदि आदि। इन सबके फलस्वरूप गाडगिल की कहानियों में हमें मिलता है जीवन के यथार्थ का व्यामिश्रण, अन्तर्विरोधों का नया भान, मनुष्य के हिस्से में आई पराश्रयता, अश्रद्धा, अविश्वास और अनाथ होने की वेदना।

गाडगिल की कहानियों में पात्र स्वयंभू (हीरो इमेज के) न होकर मात्र कथाघटक होते हैं। वे प्रायः अवचेतन मन की सहज प्रवृत्तियों एवं वासनाओं से प्रेरित दैनन्दिनी जीवन की गाड़ी खींच रहे ‘साधारण मनुष्य’ होते हैं। कथाकार जब कभी उनकी मानसिक संकीर्णाताओं और सीमाओं का विनोद-शैली में उपहास भी करता है, पर वह उपहास वास्तव में मनुष्य के प्रति न होकर ‘मनुष्यता’ का अवमूल्यन करने वाली पारिवारिक सामाजिक व्यवस्था के प्रति होता है।

प्रस्तुत कृति में गाडगिलजी की ऐसी ही बीस कहानियां संकलित हैं। आशा है हिन्दी पाठक इनके माध्यम से मराठी कहानी के परिवर्तित प्रवाह को भलीभांति समझ सकेगा।

द्वितीय संस्करण के उपलक्ष्य में

हिन्दी सहित्य प्रेमियों ने मेरे ‘सीधी-रेखा’ शीर्षक कहानी-संग्रह का हार्दिक स्वागत किया। मैं उनके प्रति कृतज्ञ हूँ। विभिन्न पत्रिकाओं ने आस्थापूर्वक उस पर ग़ौर किया है और सिर्फ़ उसके अभिमत ही नहीं, उसकी समीक्षाएं भी प्रकाशित की हैं। इन समीक्षकों ने मेरे कहानीगत चरित्र-चित्रण, मनोविश्लेषण तथा उनमें अंकित सामाजिक जीवन के प्रतिबिम्ब तथा उनकी विविधता को दर्ज किया है। उन्होंने कहा है कि इन कहानियों के रेशों में, परिवेश में व्याप्त भारतीय नारी की घुटन, कुण्ठा, यातना, सन्ताप का तनाव, शोषण, पग-पग पर जाने वाली उसकी उपेक्षा, लांछना, प्रताड़ना तथा अपमान का दर्शन दिल दहलाने वाला है। वह भारतीय सामाजिक जीवन के ज्वलन्त संत्रास को, दंश को तीखे और प्रखर रूप में उजागर करता है। उन्होंने इस बात पर भी ग़ौर किया है कि भारतीय समाज में जो एक महत्त्वपूर्ण संक्रमण हो रहा है, उसमें स्थित्यन्तर हो रहा है, उसके कुछ अंगविशेषों का यथार्थ दर्शन मेरी कहानी में होता है। मराठी पाठकों की तरह हिन्दी पाठकों को भी मेरी बाल-मनोविज्ञान पर आधारित कहानियाँ अच्छी लगी हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि मेरी कहानी में इन बातों का चित्रण होता है कि किस तरह कहानी विधा बहुरूपिणी हो सकती है और किस तरह विविध आशय व्यक्त कर सकती है, किस तरह वह विविध भाव-भंगिमाओं से पूर्ण हो सकती है।

इसमें कोई सन्देह नहीं है कि हिन्दी-कहानी-जगत् की तुलना में मेरी कहानी के विषय, कथ्य, आयाम, रूप अलग है। ऐसा होना स्वाभाविक है और अपरिहार्य भी। माहौल, भावनात्मक तापमान, रचना, निवेदन शैली आदि के सन्दर्भ में उनका अलग होना सहज स्वाभाविक ही है। लेकिन मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि अपने इस अनोखे ढंग के कारण मेरी कहानियाँ हिन्दी समीक्षकों को अजनबी नहीं लगीं, उनकी अनुभूति उन्हें सहज स्वाभाविक ही प्रतीत हुई।

केवल समीक्षकों ने ही नहीं, हिन्दी पाठकों ने भी इस कहानी-संग्रह का स्वागत किया है। यही वजह है कि फरवरी-मार्च 1990 में प्रकाशित इस कहानी-संग्रह का प्रथम संस्करण एक वर्ष के अन्दर ही समाप्त हो चुका है और अब द्वितीय संस्करण का स्वागत भी हिन्दी पाठक उसी गरमज़ोशी, उत्साह तथा आत्मीयता के साथ करेंगे।

यह मेरा अहोभाग्य है कि हिन्दी रसिक पाठक वृन्दों से परिचित होने के लिए मुझे भारतीय ज्ञानपीठ जैसी जानी-मानी मान्यवर संस्था का लाभ हो गया। इसी संस्था द्वारा मेरा हिन्दी साहित्य से गठबन्धन हो गया है। कहानियों का चयन, उनके अनुवाद और पुस्तक सम्पादन के प्रबन्ध के सिलसिले में इस संस्था ने मुझे पूरी आज़ादी दी थी। न मुझ पर कोई पाबन्दी थी, न कोई रोकटोक। मेरी ही प्रार्थना के अनुसार इस पुस्तक का आकार भी तनिक बढ़ाया गया। एक लेखक को एक प्रकाशक से इससे अच्छा व्यवहार भला और कहाँ से मिल सकता है ?

अपने इस सन्तोषजनक और सुखद अनुभूति का सेहरा मैं भारतीय ज्ञानपीठ के साथ-साथ इस संस्था के प्रकाशन संचालक बिशन टंडन जी के सिर पर भी बाँधना चाहता हूँ। टंडन जी ‘परिमल’ प्रयाग के संस्थापक सदस्य थे। आगे चलकर शासन सेवा में बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियाँ निभाते-निभाते उन्होंने अपने साहित्य प्रेम को इतनी-सी भी आँच नहीं आने दी बल्कि वह तो और भी प्रगाढ़ एवं प्रगल्भ हो गया। ज़ाहिर है, सेवा निवृत्ति के पश्चात् अब उन्होंने साहित्य प्रकाशन कार्यार्थ ही स्वयं को समर्पित किया है। अपनी प्रगल्भ कला-मर्मज्ञता, भारतीय ज्ञानपीठ के साथ ही मैं बिशन टंडन जी का भी व्यक्तिगत रूप से मनःपूर्वक आभारी हूँ।

गंगाधार गाडगिल

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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