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शैतान की औलाद
मलयालम के शिखर उपन्यासकार ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता एम. टी. उर्फ माड़त्त तेक्केप्पाट्ट वासुदेवन नायर की रचना ‘शैतान की औलाद’ (असुरवित्तु) एक कालजयी उपन्यास है। 1962 में प्रकाशित यह उपन्यास तत्कालीन सामाजिक-पारिवारिक जीवन की गहन मीमांसा प्रस्तुत करनेवाली एक सशक्त रचना है। आज के सन्दर्भ में भी इस उपन्यास की प्रासंगिकता इसलिये है कि यद्यपि सामाजिक संरचना में ढेर सारे परिवर्तन आ चुके हैं, समाज द्वारा व्यक्ति का शोषण और अपनी अहमियत बनाये रखने की व्यक्ति की छटपटाहट जो इस उपन्यास के मूल मुद्दे हैं, आज के समाज में भी उसी तरह गम्भीर रूप में विद्यमान हैं।
अब तक इस उपन्यास के कई संस्करण निकल चुके हैं – (1966, 1975, 1981, 1986, 1991, 1994, 1995, 1996, 1997, 1998, 1999, 2001, 2003) 2004 में मलयालम उपन्यास की 25वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में ‘नोवल कार्निवल’ मनाया गया तो 84 उपन्यासकारों के 84 उपन्यासों को खास महत्त्व देकर प्रकाशित किया गया।
प्रस्तुत योजना में एम.टी. के इसी उपन्यास को स्थान मिला था। ‘असुरवित्तु एक अध्ययन’ नामक आलोचनात्मक ग्रन्थ में मलयालम की मूर्द्धन्य आलोचिका डॉ. एम.लीलावती लिखती हैं-“मैंने मलयाळम के जितने उपन्यास पढ़े हैं, उनमें ‘असुरवित्तु’ मेरा सबसे पसन्दीदा उपन्यास है। कहने की ज़रूरत नहीं कि एम. टी. के उपन्यासों में मुझे ‘असुरवित्तु’ ही सबसे ज़्यादा पसन्द है !’
प्रस्तुत उपन्यास निम्न आर्थिक स्तर के परिवार में जन्मे गोविन्दन कुट्टि नामक एक व्यक्ति की, अपने स्थान हासिल करने की ज़द ओ ज़हद का बयान करता है। गोविन्दन कुट्टि के साथ जुड़े हुए एक पूरे इलाके की सामाजिक संरचना भी पृष्ठभूमि में प्रस्तुत है। गोविन्दन कुट्टि की नेकी-बदी के साथ उसके परिवार और गाँव की आशा-निराशाओं, मनःस्थितियों और भावनाओं को भी उपन्यास में स्थान दिया गया है।
अक्सर देखा जाता है कि व्यक्ति को हाशिये पर कर देने में स्वयं उसका अपना समाज एक खलनायक की भूमिका अदा करता है। वह व्यक्ति को अपनी ऊर्जा के गलत इस्तेमाल के लिये मजबूर कर देता है।
Additional information
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2009 |
Pulisher |
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