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शेष कथन
महाकवि कालिदास के ‘अभिज्ञानशाकुन्तल’ नाटक के पञ्चम अंक में राजा दुष्यंत के द्वारा कण्वसुता शकुंतला का प्रत्याख्यान होता है, क्योंकि दुर्वासा के अभिशाप के कारण राजा शकुंतला को पहचान नहीं पाते। किंतु उस प्रत्याख्यान के पश्चात् शकुंतला, शिष्य शार्ङ्गरव, माता मेनका आदि सभी की मानसिक दशा क्या रही होगी ? वे कितने असहज हुए होंगे और कातर भी। दुष्यंत का वह अनुपम प्रणय ‘अँगूठी’ जैसे किसी भौतिक प्रमाण की अपेक्षा रखता है, यह सोचकर क्या शकुंतला व्यथित नहीं हुई होगी ? शकुंतला के जन्म एवं जीवन से सम्बद्ध मेनका, विश्वामित्र, गौतमी आदि प्रत्येक पात्र शकुंतला के इस प्रत्याख्यान से कितने उद्विग्न नहीं हुए होंगे ? ये सब उक्त नाटक में कथित नहीं हैं, किंतु वास्तविक धरातल पर अभिव्यक्त हो सकते हैं। उनकी उन्हीं सभी भावविह्वल अकथित अभिव्यक्तियों का गद्य रूप है यह उपन्यास ‘शेष कथन’।
क्या यह ‘शेष कथन’ उन अकथित शेष कथनों को पूर्णतः प्रकाशित करने में समर्थ है ? क्या इस उपन्यास की आधुनिक नायिका ‘प्रतीक्षा’ उन शेष कथनों से संतुष्ट है ? यह ‘शेष कथन’ इन प्रश्नों का उत्तर देने हेतु एक लघु प्रयास मात्र है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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