Shri Raghunath Katha

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Shri Raghunath Katha

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Author: Yogeshwar Tripathi

Availability: 5 in stock

Pages: 560

Year: 2000

Binding: Hardbound

ISBN: 0000000000000

Language: Hindi

Publisher: Bhuvan Vani Trust

Description

श्री रघुनाथ कथा

समर्पण

भाषाई सेतुकरण के प्रणेता पद्मश्री पं.नन्द कुमार अवस्थी

स्वीकार करें अर्घ्य को आशीष दें कृत्य को शक्ति दें वाणी को। हो गोलोकयासी ! रखें स्व वरद हस्त जिससे तव अधूरे चित्रों में निज-भाव-तूलिका से रँग भर सकूँ मैं।

विनय कुमार अवस्थी

मुख्यन्यासी सभापति

आत्म निवेदन

रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी की क्षमता का ज्वलन्त प्रमाण है। वस्तुत: यह एक अमानवीय रचना है जिससे लोक जीवन की मार्मिक कथा है। जीवन में जितनी भी अवस्थाओं तथा परिस्थितियों की कल्पना की जा सकती है वह सारा कुछ इस ग्रन्थ में देखने को मिलता है। सद्गुरु चरणों की महिमा से लेकर पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं के निदान, ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का निरूपण, कर्म का सिद्धान्त धर्म- आदि विवेकपूर्ण विवेचन तो हैं ही पर इसके अतिरिक्त

–    ‘‘क्वचिदन्यतोऽपि’’ भी है। इसमें रहस्य ही रहस्य भरे पड़े हैं,

–    जो हमारे दैनिक जीवन में आज भी प्रासंगिक है। यही कारण है कि यह ग्रन्थ आज भी विद्वानों से लेकर निरक्षकों तक का कण्ठहार बना हुआ है।

हमारे गुरु महाराज का कथन है कि रामचरित मानस तुलसी की निजी अनुभवों का विवरण हैं परन्तु सन्त की डायरी कोई सन्त ही वस्तुत: समझ सकता है। अथवा परमात्मा की जिस पर कृपा हो-

‘‘सो जानइ जेहि देहु जनाई।’’

मेरे बाल्यजीवन में मुझे अपने पितामह पं. शिव प्रसाद जी त्रिपाठी का संरक्षण मिला।

उन्हें एक प्रकार से मानस सिद्ध थी। हमारे घर पर बहुधा संतों की चरणधूलि पड़ा करता थी। जब मैं पाँच वर्ष का था, पढ़ना-लिखना आता नहीं था परन्तु उस अल्पवयस में हमें रामायण के अनेक स्थल, गीता, अमरकोश तथा दो ढाई सौ कवित्त सवैये पितामह द्वारा रटा दिए गए थे। घण्टों संतों के साथ सत्संग की चर्चा कानों में पड़ती रहती, पर अबोध हृदय में कुछ समझ में न आता था।

समय पाकर युवावस्था में वह बीज अंकुरित होने लगे। मैंने विभिन्न भाषाओं की रामकथा पढ़ी। उसमें से कुछ ग्रन्थों का देवनागरी में अनुवाद भी किया। उड़ीसा प्रवास काल में हमारे कुछ उड़िया मित्रों ने कहा कि ऐसे लोग अधिक नहीं है।

जो सम्पूर्ण रामायण का अध्ययन करके ज्ञान वर्धन में समर्थ हों।

फिर पद्य समझने में भी कठिनाई आती हैं। अत: साररूप में मानस पर गद्य साहित्य होने से बड़ी सुविधा रहेगी। उनके परामर्श पर मेरी इच्छा कुछ लिखने की हुई।

रामकथा का अत्यन्त विशाल वृक्ष अनेकानेक सुन्दर सुस्वादु फलों से लदा था जो मेरे जैसे बामन व्यक्ति की पहुँच के बाहर थे ! न तो मुझमें वृक्ष पर चढ़कर उन भाव मय मधुर फलों के आस्वादन की क्षमता थी और न उन्हें तोड़ने को बुद्धि चातुर्य परन्तु इस तुच्छ बालक पर सद्गुरु की, गुरुजनों एवं संतों की कृपा हुई। उन्होंने अपने पद भार से बहुत सी डालियाँ नीचे की ओर झुका दीं और मैंने उन्हें पकड़कर कुछ फलों का रसास्वादन किया। उनकी कृपा से ‘‘कथा श्री रघुनाथ की’’ आप तक पहुँचाने की चेष्टा करने का मैंने प्रयास किया है।

 

‘‘राम अमित गुन सागर थाह की पावइ कोय।

संतन सन जस कछु सुनेउँ तुमहिं सुनावउँ सोय।।’’

 

इस ग्रन्थ में जो गुण आपको दिखाई दें वह उन्हीं महान् संतो तथा सद्गुरु की कृपा का फल है। जो त्रुटिया हों, उन्हें मेरी समझकर क्षमा प्रदान करेंगे। यदि इससे आपको को किंचित् भी संतुष्टि प्राप्त हो सके तो मैं अपने प्रयास को सार्थक समझूँगा। परन्तु मेरे हृदय में निम्न विश्वास अवश्य है-

 

सुनि समुझहिं जन मुदित मन, मज्जहिं अतिअनुराग।

लहहिं चारि चारि फल अछत तनु, साधु समाज 

 प्रयाग।।

ईश्वर की परम कृपा से भुवन वाणी ट्रस्ट के श्रीयुत विनय कुमार अवस्थी जी ने इस ग्रन्थ के मुद्रण का दायित्व लेकर मुझे भार-मुक्त कर दिया। इस ग्रन्थ का सर्वाधिकार समर्पित करते हुए मैं आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ।

सद्गुरु चरणाश्रित

गुरु पूर्णिमा योगेश्वर त्रिपाठी योगी

प्रकाशकीय

राम कथा के सन्दर्भ में भारत की विभिन्न भाषाओं में अनेक रामायणों एवं ग्रन्थों की रचना की गई है। इनमें वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीदास कृत रामचरित मानस विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे और बाद के रचनाकारों ने इन्हीं को आधार बनाया।

भुवन वाणी ट्रस्ट लखनऊ द्वारा राम-कथाओं को जन-जन तक पहुँचाने के प्रयास में भारत की विभिन्न भाषाओं के ग्रन्थों के देवनागरी लिप्यंतरणों के प्रकाशन की श्रृंखला प्रस्तुत की गई है।

इस दिशा में मानस-मनीषी श्री योगेश्वर त्रिपाठी ‘‘योगी’’ का योगदान निस्सन्देह स्तुत्य है, जिन्होंने विभिन्न रामायणों का अनुवाद करके हिन्दी पाठकों को सुलभ कराया।

इसी प्रयास के अन्तर्गत हम यह ग्रन्थ श्री रघुनाथ-कथा आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। श्री रघुनाथ-कथा रामचरितमानस के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित करने वाला एक अनूठा ग्रन्थ बन गया है। बल्कि यह कहना चाहिए कि श्रीराम के चरित को मानस में उतारने की प्रक्रिया का निदर्शन है यह पुस्तक।

श्री योगी जी ने इस पुस्तक में रामचरित मानस के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा की है। श्री रघुनाथ-कथा में मुख्य रूप से इन विषयों पर विवेचना प्रस्तुत की गई है-

(1)    मानस की कथा रामचरितमानस के आधार पर

(2)    मानस-प्रतिपादित सन्तुलित आहार तथा जीवन पद्धति का निर्णय

(3)    मानस में राजनीति, धर्मनीति एवं कर्मनीति का विवेचन

(4)    कर्म-मीमांस के आध्यात्मिक सिद्धांत

(5)    मानस में प्रेम योग तथा आध्यात्मिक साधना के रहस्य

(6)    आधुनिक सन्दर्भों में वैदिक सिद्धांतों तथा भारतीय आदर्शों पर प्रकाश

(7)    रामकथा में आध्यत्मिक तथ्यों का निरूपण

(8)    विश्व को तुलसी का प्रसाद एवं वर्तमान समय में मानस का योगदान

(9)    मानस सामाजिक चेतना का मूल मंत्र

(10)    मानव धर्म पर आधारित रामराज्य

(11)    मानस में विदेशों की रुचि

तुलसीदास का रामचरित मानस केवल हिन्दुओं का ही नहीं अपितु एक वैश्विक ग्रन्थ है। उसमें ‘‘ते संसार पतंग घोर किरर्णे दह्यन्ति नोमानवा:।। की घोषणा है। मानव मात्र को इससे विश्राम मिलने की बात कही गई है। लोगों के दैनिक जीवन में घटने वाली घटनाओं के कारण तथा निवारण के सूत्र इसमें मिलते हैं। वस्तुत: यह विश्व के मानवधर्म का एक प्रतिनिधि ग्रन्थ हैं। तभी तो विदेशी विद्वानों में डॉ. कामिल बुल्के, श्री ग्रियर्सन और रूस के श्री वरान्निकोव आदि प्रचुर विद्वानों के समुदाय इससे प्रभावित होकर सामने आये।

इसमें नानापुराण निगम आगम के मतों के साथ-साथ ‘‘क्वाचिदन्यतोऽपि’’ के सूत्र भी शामिल हैं। आध्यात्मिक पथ के विभिन्न पड़ावों के रहस्य भी निज अनुभव के माध्यम से सुलझाए गए हैं। इसके द्वारा लोकजीवन को सुथ-शान्ति के मंदिर में प्रवेश करने हेतु सात काण्ड रूपी सात सोपानों (सीढ़ियों) का निर्माण हुआ है।

मानव पीयूष तथा मानस गूढ़ार्थ चन्द्रिका आदि कई खण्डों में प्रकाशित, वृहद् ग्रन्थ में मानस के प्रत्येक शब्द का विवेचन विशद् रूप से प्राप्त है परन्तु आज के इस अत्यधिक व्यस्त समय में लोगों को उन्हें पढ़कर अपने को निष्णात करने का समय कहाँ ? अत: अत्यन्त संक्षिप्त रूप में सभी घटनाओं को, रहस्यों तथा तथ्यों को सरल भाषा में छूने का प्रयास ही है

‘‘श्री रघुनाथ-कथा’’। इसमें आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय चेतना के विविध पहलुओं पर गवेष्णात्मक विचार प्रस्तुत किये गये हैं। मानव धर्म के प्रतिनिधित्व से ही आज के उद्विग्नता, प्रतिहिंसात्मक भावना, आचरण हीनता एवं छल-कपट से पूर्ण समाज के लिए मानस जैसी आचार संहिता की परम आवश्यकता है। इसमें सामाजिक समरसता, राष्ट्रीय चेतना, पारिवारिक संरचना, सद्गुरु महिमा, भक्ति-ज्ञान के विवेचन तथा कर्म के सिद्धांत आदि भारतीय परम्परा के अनुसार वर्णित हैं,

जिसके द्वारा सच्चरित्रता के क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त किया गया है।

 

मानस के काण्डों का नामकरण भी सटीक बैठता है।

(1)    प्रथम सोपान बाल काण्ड-

जब बालक की भाँति सरल हृदय हो, निराभिमान, निष्कपटभाव हो उसी प्रेम के तरंगायित स्थान में भगवान् (राम) प्रकट होते हैं।

(2)       द्वितीय सोपान अयोध्या काण्ड-

जहाँ आपस में कलह (युद्ध), विद्वेष, वैर और विशमता न हो तो राम का निवास बन जाना स्वाभाविक है। जब वहाँ विषमताओं का उद्भव हो जाता है तो राम उस स्थान से चला जाता है। राम वन-गमन इसका सूचक है।

(3)    तृतीय सोपान अरण्य काण्ड-

यह स्वत: बताता है कि एकान्त में संयम बढ़ाकर मन की वासनाओं को शमन करना ही उस समय मानव के लिए श्रेयस्कर है। इन्हीं के द्वारा वह न जाने कितनी मानसिक बुराइयों (राक्षस कुल) को समाप्त करने में सक्षम हो जाता है। आगे की भूमिका भी सीता के माध्यम से निर्णीत होती है।

(4)    चतुर्थ सोपान किष्किन्धा काण्ड-

सुन्दर कण्ठ वाले सुग्रीव से मित्रता होती है। कण्ठ की सुन्दरता आभूषण से नहीं भगवन्नाम के जप से होती है। क्रोध (बालि) का नाश होता है।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2000

Pulisher

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