Siddh Sahitya
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Description
सिद्ध साहित्य
बौद्ध-सिद्धों और पत्रों की सामाजिक स्थिति में भी एक बहुत बडा अंतर आ चुका था। 8 वीं शताब्दी में तांत्रिक आन्दोलनों के अध्ययन से प्रतीत होता था कि सारे देश में संकीर्ण ‘जाति-व्यवस्था और शुद्धतावादी अमीर-पद्धति के विरुद्ध एक व्यापक विद्रोह जाग उठा था और निम्न वर्ग की जातियाँ उस समय सशक्त और जागरूक थी। अत: एक ओर ये सन्त एक पराजित और सामाजिक अन्य से पीडित वर्ग के प्रतीक थे, दूसरी ओर ये तांत्रिक विद्रोह के खोखलेपन से भी परिचित थे और तीसरी ओर यवनों की मजहबी कटूटरता का भी स्वागत नहीं कर पाते थे और चौथी ओर वैष्णव भज-साधना के प्रति आकर्षित होते हुए भी उनके अवतारवाद को ये तर्कसम्मत नहीं मानते थे।
सिद्ध-साहित्य का यह अध्ययन एक ओर उन कई जटिलताओं का समाधान करता है जो अभी तक पत्रों और नाथयोगियों के अध्ययन में बाधक सिद्ध होती रही है, दूसरी ओर वह अनादिकाल और मध्यकाल के सर्वथा नये मूल्यांकन के लिए एक भूमिका भी प्रस्तुत करता है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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