Sindbad Ki Saat Yatrayein

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Sindbad Ki Saat Yatrayein

Sindbad Ki Saat Yatrayein

75.00 70.00

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Author: Richard Burton Translated Srikant Vyas

Availability: 2 in stock

Pages: 80

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788174830012

Language: Hindi

Publisher: Rajpal and Sons

Description

सिन्दबाद की सात यात्राएं

सिन्दबाद की कहानी

बगदाद में खलीफा हारूं अल् रशीद के राज में एक गरीब कुली रहता था। उसका नाम था हिन्दबाद। गर्मी के दिन थे। एक दिन हिन्दबाद बहुत भारी बोझ उठाकर कहीं जा रहा था। रास्ते में थककर वह एक जगह आराम करने लगा। अचानक वह यह देखकर चौंका कि कहीं से गुलाबजल की भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। जिस जगह पर वह बैठा था। वहाँ एक बड़े मकान की ठण्डी छाया थी। हिन्दबाद को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि बगदाद में इतना बड़ा मकान और किसी का नहीं था। मकान के खुले दरवाजे से उसने देखा कि अन्दर एक बहुत बड़ा बाग था। बाग में तरह-तरह के पेड़ लगे हुए थे।

वह यह पता लगाने के लिए कि यह मकान किसका है, दीवार के साथ-साथ थोड़ी दूर आगे बढ़ा और एक खिड़की के पास जा पहुँचा। उस खिड़की में से ठण्डी-ठण्डी हवा आ रही थी और उसमें गुलाबजल की खुशबू मिली हुई थी। खिड़की पर खस की पट्टी पड़ी हुई थी। हिन्दबाद को लगा भीतर कोई दावत चल रही है। रह-रहकर अन्दर के लोगों के ठहाके मारकर हंसने की आवाज़ें आ रही थीं।

हिन्दबाद ने अचानक मुड़कर देखा तो एक चौकीदार उनकी तरफ चला आ रहा था। हिन्दबाद बहुत घबराया। उसने डरते-डरते चौकीदार से पूछा क्यों भैया यह आलीसान महल किसका है ‍?’’

चौकीदार ने कहा, ‘‘क्यों’ तुम्हें पता नहीं है ? क्या तुम बगदाद के रहने वाले नहीं हो यह मशहूर जहाज़ी सिन्दबाद का मकान है। वही सिन्दबाद जो सारी दुनियाँ की सैर कर आया है और बगदाद का सबसे अमीर आदमी माना जाता है !’’

हिन्दबाद ने कहा, ‘‘अच्छा, अच्छा, यह उसी अमीर आदमी सिन्दबाद का मकान है। मैंने पहले कभी इसे नहीं देखा था। क्या शानदार मकान है ! दुनिया की हर तरह की आरामदेह चीज़ें उसने यहाँ इकट्ठी कर रखी हैं। सब तकदीर की बात है। एक यह सिन्दबाद है और एक मैं हूँ। हम दोनों के नामों में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है, फिर भी दोनों की ज़िन्दगी में कैसे ज़मीन आसमान का फर्क है। मैं दिनभर कमरतोड़ मेहनत करता हूँ। भारी बोझ उठाता हूं और फिर भी अपने बच्चों के लिए सूखी रोटी नहीं कमा पाता।’’

दोनों इस तरह बात कर रहे थे इतने में कोठी के भीतर से एक नौकर बाहर आया और हिन्दबाद के पास आकर बोला, ‘‘आओ, तुम ज़रा अन्दर चले चलो। मेरा मालिक तुमसे बात करना चाहता है।’’

हिन्दबाद की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। वह वहाँ से भागना चाहता था। उसने सोचा कि शायद अन्दर सिन्दबाद ने उसकी बातें सुन ली हैं। अब वह उसको दण्ड देने के लिए अन्दर बुला रहा है। लेकिन अब वह वहाँ से भाग नहीं सकता था क्योंकि चौकीदार और नौकर दोंनो उससे बहुत ज़्यादा तगड़े थे। उसने डरते-डरते नौकर से कहा, ‘‘भाई, मुझे, माफ करो। मुझसे गलती हो गई। मैं तो थककर थोड़ी देर आराम करना चाहता था। अब मैं चलता हूँ।’’

इस पर नौकर ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘डरो मत डरने की कोई बात नहीं। मेरे साथ अन्दर चले चलो।

सिन्दबाद से बिना मिले तुम्हें जाना नहीं चाहिए।’’

हिन्दबाद चुपचाप उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अन्दर पहुँचने पर उस आलीशान महल की शान-शौकत देखकर हिन्दबाद की आंखें फटी की फटी रह गई। चारों तरफ सुन्दर फूल खिले हुए थे और हौजों में फव्वारे चल रहे थे। संगमरमर की सीढ़ियाँ पार करके वे लोग अन्दर पहुँचे। बड़े-बड़े झाड़-फानूस और रंग-बिरंगे शीशों से सजे हुए कमरों और गलियारों में होते हुए भी एक बहुत बड़े कमरे के दरवाजे़ में वे लोग पहुँचे।

नौकर ने हरे रंग का भारी परदा उठाकर बड़े अदब के साथ हिन्दबाद को कमरे में जाने का इशारा किया। हिन्दबाद डरते-डरते उस कमरे में घुसा। पूरे कमरे में खूबसूरत कालीन बिछे हुए थे। बीच में मखमल के मोटे-मोटे गद्दों पर कुछ लोग आराम से बैठे थे। उनके बीच में कीमती तख्त पर सिन्दबाद बैठा था। आस-पास तरह-तरह के फलों और मेवों की तश्तरियाँ रखी हुई थीं। बड़े-बड़े थालों में मिठाइयाँ और तरह-तरह की खाने-पीने की चीजें सजी थीं। सब लोग बैठकर आराम से खा रहे थे और बात कर रहे थे।

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Binding

Paperback

Language

Hindi

Publishing Year

2019

Pulisher

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