- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
Description
सियाहत
यात्रा-वर्णन यदि आपसे संवाद करे तो आप भी दृश्यों के साक्षी बन जाते हैं। यात्रा अगर नदी-पहाड़-वन-पर्वत-गाँव-कस्बा हर तरफ हो तो आप प्रकृति के साथ-साथ जीवन की अद्भुत झाँकी पाते हैं। यह यात्रा यदि बिहार का युवक दिल्ली होते हुए केरल पहुँचकर आसपास तमिलनाडु-आन्ध्र-कर्णाटक यानी पूरे दक्षिण भारत की करे तो केवल सौन्दर्य की सुखानुभूति न होगी, प्रायः सांस्कृतिक धक्के भी लगेंगे। उत्तर भारत में दिसम्बर की ठंड के समय दक्षिण की तपती गर्मी का वर्णन प्रकृति के वैविध्य का ज्ञान कराएगा तो मलयाली कवि ओएनवी कुरूप के निधन पर पूरे केरल में सार्वजनिक शोक सांस्कृतिक ईष्या भी उत्पन्न करेगा।
युवा लेखक अलोक रंजन ने सियाहत में संस्मरण-रेखाचित्र-रिपोतार्ज-डायरी जैसी अनेक शैलियों को मिलाकर जो यात्रा-वर्णन पेश किया है, उसकी सबसे बड़ी खूबी संवाद है। इस संवाद में गहरी आत्मीयता है। ‘सौन्दर्य का प्रलय प्रवाह’ हो या किंवदन्तियों में छिपे इतिहास का उद्घाटन, भय-रोमांच-जोखिम से भरी कठिन सैर हो या ‘दक्षिण भारत की द्रविड़ शैली और उत्तर भारत की नागर शैली’ के संयोग से चालुक्यों द्वारा निर्मित डेढ़ हज़ार साल पहले के विलक्षण मंदिर, अपनी आकर्षक भव्यता के साथ रंग-ध्वनि-स्पर्श-गन्ध से समृद्ध दृश्य हों या स्वच्छ नदियों का प्रदूषित होता वातावरण जिसे बढ़ाने में ‘प्रदूषण’ और ‘स्वच्छता’ की राजनीति भरपूर सक्रिय है, केरल से विलुप्त होते यहूदी हों या अज्ञातप्राय मुतुवान आदिवासी, सियाहत में इतना सजीव और वैविध्यपूर्ण वृत्तान्त है कि एक पल को भी ऊब या निराशा नहीं होती।
सबसे बड़ी बात यह कि आलोक ने जगह-जगह तुलनात्मक और आलोचनात्मक बुद्धि से काम लेकर पूरे संवाद को भावुक गीत नहीं बनने दिया है बल्कि उसे व्यापक संस्कृति-विमर्श का हिस्सा बना दिया है।
Additional information
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.