- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
स्मृतियाँ जो संगिनी बन गई
दरअसल, उन महानुभावों ने भारतीय समाज में पुनर्जागृति लाने के लिए सबसे पहले समाज में नारी को सम्मान दिलाने और उनमें जागृति लाने के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रसार को अहमियत दी थी। उनकी बतायी राह पर चलने वाले अन्यान्य लोगों में से एक थे स्व. बृजनन्दन शर्मा। बिहार के भूमि-पुत्र, जो हिन्दी प्रचारिणी सभा के मद्रास में सेवारत रहे, अपनी जन्मभूमि की याद आयी और उन्होंने बिहार के समाज में पुनर्जागृति लाकर उन्नत बनाने के लिए बालिकाओं की शिक्षा को प्राथमिकता दी। सैकड़ों एकड़ बंजर पड़ी हुई भूमि का चुनाव किया। जंगल में मंगल की योजना बना डाली। राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक और शैक्षणिक जीवन से जुड़े बिहार के तत्कालीन जनों में शायद ही कोई बचा हो जिन्हें शर्मा जी, हमारे बाबूजी ने विद्यापीठ के लिए सहयोग देने से वंचित रखा हो। अपनी सहधर्मिनी पत्नी श्रीमती विद्या देवी के तपबल और मनोबल का सहयोग लिए बाबूजी ने देखते-ही-देखते उस मरुभूमि पर बालिकाओं के लिए अपने ढंग का अनूठा, बिहार का इकलौता शिक्षण-स्थल बना दिया। मात्र विद्यापीठ के विकास के लिए चन्दा इकट्ठा करने का नहीं वरन मध्यम श्रेणी के अभिभावकों को अपनी लड़कियों को शिक्षित बनाने की प्रेरणा देने तथा निर्धन परिवारों से योग्य कन्याओं को बटोरने के लिए भी उनका भ्रमण जारी रहा।…
पश्चिमी सभ्यता की झहराती पछुआ हवा के झोंकों से भारतीय स्त्री समाज की मुट्ठीभर युवतियाँ जाने-अनजाने प्रभावित हुई हैं। पारिवारिक बन्धन की गाँठें ढीली हुई लगती हैं। स्वतन्त्रता के नाम पर स्वेच्छाचारिता की राह पर क़दम पड़े हैं, औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा में नैतिक शिक्षा के अभाव ने जीवन में उच्छृंखला घोल दी है। कर्तव्य से अधिक अधिकार की माँग बढ़ती जा रही है। जीवन में उपभोग की प्रधानता से स्वयं नारी व्यक्ति नहीं, वस्तु बनती या बनायी जा रही है। समाज को पुनः भारतीयता की ओर लौटाने और नारी को वस्तु नहीं व्यक्ति बनाने में विद्यापीठ का अपना अनोखा ढंग होगा। सादा जीवन, उच्च विचार को व्यवहार में ढालने का विद्यापीठ का अपना रंग रहा है, रहेगा। नारी समाज का ‘पुरानी नींव, नया निर्माण’ के आधार पर विकास ध्येय रहा है। यह रंग और गहरा हो जाये, भट्ठियों की धुलाई में भी फ़ीक़ा न पड़े, यह प्रयास करना होगा विद्यापीठ परिवार से जुड़े हुए समस्त परिवारजनों को। शरीर, मन, बुद्धि और व्यवहार से समाज रचना के लिए उद्धृत, भारतीय जीवन-मूल्यों के शाश्वत बीज तत्त्वों को अपनी पीड़ादायिनी सृजनशक्ति से पुनर्जीवन प्रदान करने, उनका पालन-पोषण करने हेतु मुट्ठीभर विद्यापीठ की छात्राएँ बढ़ेंगी, समाज ऋणी रहेगा। विद्यापीठ का प्रयास सागर में एक बूँद के बराबर ही हुआ तो क्या, बूँद-बूँद से ही तो सागर बनता है।
—इसी पुस्तक से
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.