Stree : Mukti Ka Sapna

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Stree : Mukti Ka Sapna

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Author: Arvind Jain, Leeladhar Mandloi

Availability: 5 in stock

Pages: 544

Year: 2014

Binding: Paperback

ISBN: 9789350723685

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

स्त्री : मुक्ति का सपना
कहना न होगा कि स्त्री के मानवीय सौन्दर्य की सहज अनदेखी हो रही है। उसे सिर्फ़ देह तक सीमित कर दिया गया है। स्त्री की देह का बाज़ार द्वारा यह उपनिवेशीकरण है। इस उपनिवेश में बाज़ार के साथ मीडिया का घोषित करार है। मीडिया स्त्री देह को सेक्स सिंबल के अलावा कुछ और नहीं मानता।

‘पाप’ या ‘ज़िस्म’ जैसी फिल्मों का संसार हो अथवा एम.टी.वी. एस.बी.ओ, फैशन टी.वी जैसे चैनलों का विश्वव्यापी संजाल। इन्टरनेट हो अथवा मोबाइल के ज़रिए स्त्री देह को क़ैद करती उत्तेजक छवियाँ। मीडिया से हर एक प्रक्षेपित किए जा रहे सन्देश का मूल है कि देह ही सर्वोपरि है। विज्ञापनों में भी यह बात साफ़ तौर पर देखी जा सकती है कि उनमें मानवीय सम्बन्धों का खुलेआम बाजारीकरण हो रहा है। अगर आप खास साबुन, क्रीम, शेपू, टूथपेस्ट इस्तेमाल नहीं करते तो आपके सम्बन्ध विकसित, स्थापित होना कठिन है। मीडिया ने मानवीय सम्बन्धों को भी ब्रॉण्ड के उपयोग से सीधे-सीधे जोड़ दिया।

चिन्तन की बात है कि स्त्री कहीं न कहीं इसे स्त्री मुक्ति के प्रश्न से जोड़ती है। एक हद तक यह सच भी हो सकता है किन्तु उसका बाज़ार का उपनिवेश बन जाने का जो सच है उस पर गौर करना ज़रूरी है। प्रकारान्तर से यह भी एक सवाल है कि स्त्री मीडिया का अस्त्र है या मीडिया स्त्री का। दोनों की जुगलबन्दी भी एक सच है। किन्तु यह सच है कि स्त्री की छवि बदल रही है। अब हमारे सामने एक नई स्त्री है। इस नई स्त्री को अपनी स्थिति का विश्लेषण स्वयं भी करना होगा। उसकी सचेतनता ही उसके भविष्य के रूप को तय करेगी। स्त्री को यह नहीं भूलना चाहिए की मीडिया पर वर्चस्व पुरुषों और उनकी घोषित-अघोषित सत्ता का है। और इस सत्ता के सूत्र पितृसत्तात्मक व्यवस्था में हैं। अतः इस षड़यन्त्र को समझे बिना स्त्री की सही मुक्ति सम्भव नहीं।

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2014

Pulisher

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