Stree Vimarsh Ki Uttar Gatha

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Stree Vimarsh Ki Uttar Gatha

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400.00 300.00

Author: Anamika

Availability: 5 in stock

Pages: 176

Year: 2017

Binding: Hardbound

ISBN: 9788171382514

Language: Hindi

Publisher: Samayik Prakashan

Description

स्त्री विमर्श की उत्तर गाथा

चर्चित कवि-कथाकार-आलोचक अनामिका उन स्त्री विमर्शकारों में से हैं जो अंग्रेजी विद्वान होते हुए भी अपने चिन्तन में भारतीय मूल से जुड़ी हैं।

अनामिका जी की यह मान्यता सही है कि हमारे वर्तमान समय में, सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि स्त्रियां तो ‘धुवस्वामिनी’ वाली कद-काठी पा गई है, किन्तु पुरुष अभी रामगुप्त की मनोदशा में ही है, वे चन्द्रगुप्त नहीं हुए। नई स्त्री बेतरह अकेली है, क्योंकि उसको अपने पाए का धीरोदात्त, धीरललित, धीरप्रशांत नायक कहीं दीखता ही नहीं। स्त्रियों का जितना बौद्धिक विकास पिछले तीन दशकों में हुआ है, पुरुषों का नहीं हुआ है। बराबर का यह साथ तभी हो सकेगा, जब पुरुष अतिपुरुष न रहें और स्त्रियां अति स्त्री।

संतुलन को ही सुख का मंत्र माननेवाली अनामिका की विचारक दृष्टि पश्चिमी दार्शनिक निकाय से होती हुई भारतीय आर्ष ग्रन्थों तक ही नहीं, लोकसाहित्य तक भी पहुंचती है। इस विमर्श में स्त्रीवादी चिन्तन की मुख्य धाराओं, स्त्रीवादी आलोचना, स्त्री-केन्द्रित आन्दोलन और भारतीय साहित्य के अंतस तक पैठने की सफल चेष्टा नजर आती है। यह कहना जरूरी ही है कि हिन्दी में ‘स्त्री विमर्श’ की उत्तर-गाथा सरीखी  विचारोत्तेजक और संतुलित विचार वाली पुस्तकें विरल ही हैं।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2017

Pulisher

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