Stri Ko Stri Rehne Do…Bas
₹595.00 ₹475.00
- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
स्त्री को स्त्री रहने दो… बस
स्त्री और पुरुष दोनों को समझना होगा कि वो परस्पर संघर्ष के लिए नहीं बल्कि साथ चलने के लिए बने हैं। पुरुष को स्त्री के दमन को छोड़ना होगा, उसे दोयम दर्जे का प्राणी समझना बन्द करना होगा और स्त्री को भी पुरुष द्वारा बनायी गयी देह की परिभाषा में स्वयं को ढलने से रोकना होगा। …कैसी विडम्बना है कि एक ओर तो स्त्री के लिए समानता का अधिकार माँगा जा रहा है तो दूसरी ओर अपराध में पुरुष के साथ बराबर की भागीदारी होने पर भी दया की भीख माँगी जाती है, वह भी उसके स्त्री होने का तर्क देकर। स्त्री को स्वयं तय करना होगा कि उसे क्या चाहिए ? यदि वह पुरुषोचित वेशभूषा, व्यवहार या और कुछ भी अपनाती है तो उसके पीछे ‘पुरुष करते हैं तो हम क्यों न करें’ जैसां खोखला तर्क न हो, बल्कि पसन्द, सुविधा और आवश्यकता जैसे सार्थक तर्क हों। सौंदर्य के मादक प्रदर्शन, जिस्म की उत्तेजक नुमायश और विषम परिस्थितियों में अश्रुधार को छोड़कर उसे अपनी प्रतिभा और दृढ़ निर्णय शक्ति से समाज को परिचित कराना होगा। अपने स्त्रैण गुणों को हीन समझना बन्द करना होगा।
…वस्तुतः स्त्री को स्वयं अपनी आवश्यकताओं, आकाँक्षाओं के विषय में मुखर होना होगा। अपनी पहचान देह से हटकर बनानी होगी और स्वयं को त्यागमयी देवी और “अबला” दोनों के बीच से हटाकर ‘स्त्री’ बने रहना होगा क्योंकि उपर्युक्त दोनों रूप पुरुष प्रधान समाज ने अपनी सुविधा के लिए बना दिये हैं।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.