Striyan Ghar Lautti Hain

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Striyan Ghar Lautti Hain

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Author: Vivek Chaturvedi

Availability: 5 in stock

Pages: 108

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9789389563504

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

विवेक चतुर्वेदी की कविताओं में सघन स्मृतियाँ हैं, भोगे हुए अनुभव हैं और विराट कल्पना है; इस प्रकार वे भूत, वर्तमान और भविष्य का समाहार कर पाते हैं, और यहीं से जीवन के वैभव से सम्पन्न समवेत गान की कविता उत्पन्न होती है, कविता एक वृन्दगान है पर उसे एक ही व्यक्ति गाता है। अपनी कविता में विवेक, भाषा और बोली-बानी के निरन्तर चल रहे विराट प्रीतिभोज में से गिरे हुए टुकड़े भी उठाकर माथे पर लगाते हैं, उनकी कविता में बासमती के साथ सावाँ-कोदो भी है और यह साहस भी, कि यह कह सकें कि भाई सावाँ-कोदो भी तो अन्न है। वे बुन्देली के, अवधी के और लोक बोलियों के शब्द ज्यों-के-त्यों उठा रहे हैं यहाँ पंक्ति की जगह पाँत है, मसहरी है, कबेलू है, बिरवा है, सितोलिया है, जीमना है। वे भाषा के नये स्वर में बरत रहे हैं, रच रहे हैं। हालाँकि अभी उन्हें अपनी एक निज भाषा खोजनी है और वे उस यात्रा में हैं। वे लिखने की ऐसी प्रविधि का प्रयोग करने में सक्षम कवि हैं, जिसमें अधिक-से-अधिक को कम-से-कम में कहा जाता है।

यह कविता द्रष्टव्य है एक गन्ध ऐसी होती है जो अन्तस को छू लेती है गुलाब-सी नहीं चन्दन-सी नहीं ये तो हैं बहुत अभिजात मीठी नीम-सी होती है तुम ऐसी ही एक गन्ध हो। ‘भोर होने को है’ एक अद्भुत दृष्टि सम्पन्न कविता है। बेटी के प्रति पिता के संवेदनों से शुरू हुई कविता इतनी विराट हो जाती है कि उसमें नन्हीं पृथ्वियाँ खेलती हैं और इस यात्रा में कवि अपने पुरुष होने से भी अतिक्रमित हो जाता है और कविता की गहनता में स्त्री चेतना को जी कर पृथ्वी को अण्डे की तरह से सेता है जिससे असंख्य छोटी पृथ्वियाँ जन्म ले लेती हैं और कविता की पृथ्वी ऐसी है जिसमें एक स्त्री खुले स्तनों से निश्चित अपने बच्चे को दूध पिला सकती है। विवेक की कविताएँ, एक मानसिक अभयारण्य बनाती हैं उनके लिए, जिनका कोई नहीं है उनमें स्त्रियाँ भी हैं, बूढ़े भी, बच्चे भी, और हमारे चारों ओर फैली हुई यह धरती भी।

इस संग्रह में नौ कविताएँ स्त्री केन्द्रित हैं, कोई कहता है कि, विवेक स्त्रीव्यथा के कवि हैं पर जब हम ‘मेरे बचपन की जेल’ पढ़ते हैं तो लगता है कि वे जागतिक सामर्थ्य और मनुष्यता की व्यथा के कवि हैं। शीर्षक कविता ‘स्त्रियाँ घर लौटती हैं’ भी साधारण में असाधारण खोजने की कविता है और इस तरह ये चौंकाती है कि हम रोज़ देखते रहे हैं कि स्त्री काम से घर लौटती है, पर विवेक जैसे इस कविता में परकाया प्रवेश कर जाते हैं और घर लौटती स्त्री के पूरे संघर्ष और सामर्थ्य में रत होते हैं। …स्त्री है जो बस रात की नींद में नहीं लौट सकती उसे सुबह की चिन्ताओं में भी लौटना होता है। …एक स्त्री का घर लौटना महज़ स्त्री का घर लौटना नहीं है धरती का अपनी धुरी पर लौटना है। हिन्दी कविता के गाँव में विवेक चतुर्वेदी की आमद भविष्य के लिए गहरी आश्वस्ति देती है।

मुझे भरोसा है कि वे यहाँ नंगे पाँव घूमते हुए इस धरती की पवित्रता का मान रखेंगे। ‘स्त्रियाँ घर लौटती हैं’ में निबद्ध विवेक चतुर्वेदी की कविताएँ स्वयं सम्पूर्ण, अतुलनीय, स्वयंभू एवं अद्भुत हैं। इनका प्रकाशन भारतीय काव्य की अविस्मरणीय घटना के रूप में व्याख्यायित होगा ऐसी आशा है। सहृदय पाठक इनका समुचित आदर करेंगे।

अस्तु अरुण कमल

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Authors

Binding

Paperback

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Publishing Year

2019

Pulisher

Language

Hindi

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