Sukarat Ka Muqadama Aur Unki Mrityu

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Sukarat Ka Muqadama Aur Unki Mrityu

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95.00 90.00

In stock

95.00 90.00

Author: Manmathnath Gupta, Pleto

Availability: 5 in stock

Pages: 147

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788123729343

Language: Hindi

Publisher: National Book Trust

Description

सुकरात का मुकदमा और उनकी मृत्यु

आज हम जिसे यूरोपीय सभ्यता और संस्कृति के नाम से जानते हैं, उसमें निश्चित रूप से ग्रीस का सबसे अधिक दान है। यों तो यह कहा जाता है कि यूरोप ने रोमनों से कानून की एक महान पद्धति तथा उसके साथ ही साथ राज्य-संचालन का कौशल प्राप्त किया, जूडिया से धर्म पाया और ग्रीस से दर्शन, विज्ञान और साहित्य पाया, पर इतने से सत्य प्रकट नहीं होता। विभिन्न क्षेत्रों के बड़े से बड़े साहित्यकारों ने ग्रीस की बात छिड़ते ही जिस उच्छ्वसित ढंग से उसकी प्रशंसा की है, वह बहुत ही विशिष्ट है।

हम सभी लोग जानते हैं कि किस प्रकार जर्मन महाकवि गेटे ने कालिदास के शकुंतला नाटक की प्रशंसा की है, पर ग्रीस के कवियों के संबंध में उनके ये मंतव्य विशेष ध्यान देने योग्य हैं। उनका कहना है : ‘‘इशीलस और सोफोक्लिस की तरह प्राचीन ग्रीक कवियों के सामने मैं तो बिल्कुल कुछ नहीं हूं।’’

कवि वर्डसवर्थ ने इसी प्रकार कहा है : ‘‘भला डिमोस्थिनिस से बढ़कर वक्ता और शेक्सपियर के बाद इशीलस-सोफोक्लिस (यूरिपिडिस का तो कुछ कहना ही नहीं) के मुकाबले में काव्यमय नाटक कहां मिल सकते हैं ।’’

हेरोडोटस से संबंध में वर्डसवर्थ का यह कहना था कि बाइबिल के बाद उससे बढ़कर दिलचस्प और शिक्षाप्रद कोई पुस्तक नहीं है। कविवर शैली की प्रशंसा इनके मुकाबले में कम उच्छ्वसित थी, पर उनका भी यह कहना था : ‘‘ग्रीकों की कविता दूसरे साहित्यों के मुकाबले में काफी ऊंचा मानदंड रखती है, यद्यपि वह इतनी ऊंची नहीं है कि वह बहुत ऊंची जंचे और दूसरी बहुत नीचे।’’

उनका कहना था, ‘‘पैरिक्लिस के जन्म और अरस्तू की मृत्यु के बीच का युग निश्चित रूप से विश्व-इतिहास का सबसे स्मरणीय युग है। चाहे इस पर अलग से विचार किया जाए या बाद के सभ्य मानव पर उसका क्या असर रहा, उस दृष्टि से उस पर विचार किया जाए।… इन सूक्ष्म और गंभीर मनों के जो इतस्ततः विक्षिप्त टुकड़े हमें प्राप्त हुए हैं, वे सुंदर मूर्ति के भग्नांशों की तरह हमारे सामने अस्पष्ट रूप से उस समय की महत्ता तथा पूर्णता का चित्र पेश करते हैं जो अब नहीं रहा। विविधता, सरलता, नमनीयता, प्रचुरता, जिस दृष्टि से भी देखा जाए, पाश्चात्य जगत में ग्रीक भाषा से बढ़कर कोई भाषा न रही।’’

इसी प्रकार सैकड़ों उद्धरण दिए जा सकते हैं। फ्रांस के युगांतरकारी लेखक अनातोल फ्रांस का यह वक्तत्व्य सुनिए : ‘‘मैं अब जानता हूं कि मैं ग्रीकों का कितना ऋणी हूं क्योंकि मेरा सब कुछ उन्हीं का है। हम जानते हैं जगत और मनुष्य का जो कुछ भी बुद्धिसंगत है, वह सब उन्हीं से आया हुआ है।’’

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2019

Pulisher

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