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Description
सुरंगमा
‘‘छोट्टो घर खानी
मौने की पौड़े सुरंगमा ?
मौने की पौड़े, मौने की पौड़े ?…
एक प्राणों से प्रिय व्यक्ति तीन-चार मधुर पंक्तियों से सुरंगमा के जीवन को झंझा के वेग से हिलाकर रख देता है। बार बार।
शराबी, उन्मादी पति से छूट भागी लक्ष्मी को जीवनदाता मिला अँधेरे भरे रेलवे स्टेशन में। रॉबर्ट और वैरोनिका के स्नेहसिक्त स्पर्श में पनपने लगी थी उसकी नवजात बेटी सुरंगमा, लेकिन तभी विधि के विधान ने दुर्भाग्य का भूकम्पी झटका दिया और उस मलबे से निकली सरल निर्दोष पाँच साल की सुरंगमा कुछ ही महीनों में संसारी पुरखिन बन गई थी फिर शिक्षिका सुरंगमा के जीवन में अंधड़ की तरह घुसता है एक राजनेता और सुरंगमा उसकी प्रतिरक्षिता बन बैठती है।
क्या वह इस मोहपाश को तोड़कर इस दोहरे जीवन से छूट पाएगी ?
मौने की पौड़े सुरंगमा ?
एक एकाकी युवती की आंतरिक और बाहरी संघर्षों की मार्मिक कथा।
सुरंगमा
प्रशस्त लॉन की हरीतिमा पर सतरंगी आभा बिखेरती धूप की बृहत रंगीन छतरी हवा में नाव के पाल-सी झूम रही थी, सामने धरी मेज़ पर दो-तीन फाइलों के पन्ने हवा में फड़फड़ा रहे थे। सुरंगमा कुछ हिचक से ही आगे बढ़ी थी। एक बार जी में आया, वहीं से लौट जाएं। अभी तो किसी ने उसे देखा भी नहीं था, फिर मीरा के शब्द उसके कानों में गूँज गए—‘डैडी ने सब बातें कर लीं हैं—तू नहीं मत करना सुरंगमा, तेरे भविष्य के लिए यही सामान्य ट्यूशन एक दिन असामान्य सिद्ध होगा। पांडेजी, इस समय मंत्रिमडल के सबसे दैदीप्यमान नक्षत्र हैं’ सुरंगमा फिर उसी मेज़ के पास खड़ी हाथ की घड़ी देखने लगी थी, मेज़ पर चश्मा औंधा पड़ा था।
फाइल के पन्ने अभी भी फड़फड़ा रहे थे, हाथ की घड़ी नौ बजा रही थी, पर जिसने उसे आठ बजे मिलने का समय दिया था, वह कहीं नहीं था। वह तो अच्छा था, वह आज ही शाम आठ बजे का खाना भी बना-बुनूकर ढाँप आई थी। ठीक साढ़े सात बजे बैंक पहुंचना था। कब तक ऐसे खड़ी रहेगी। उसने इधर-उधर दृष्टि फेरी। एक बेंच पर कई खद्दर की टोपियाँ एक साथ दिख गईं, लगता था कि सब मंत्रीजी के मिलने वाले थे। ओफ, इतनी भीड़ में क्या उसे देख पाएँगे मंत्रीजी ? अगर आ भी गए तो उस भीड़ के घेरे को चीर उन तक पहुंचने में ही उन्हें घंटाभर लग जाएगा। कैसी विचित्र भीड़ थी। कोई सुरती फाँक रहा था, कोई पनबट्टे से बीड़ा निकाल रहा था, तब ही एक मटमैली-सी रंग उड़ी शेरवानी पहने हृदय-पुष्ट सज्जन टोपी सम्भालते उसकी ओर बढ़ आए, ‘‘क्यों बहनजी, कै बजे मिलेंगे मंत्रीजी, कोई कह रहा है गवर्नमेंट हाउस चले गए हैं।’’
‘‘मुझे पता नहीं, मैं स्वयं ही उनसे मिलने आई हूँ।’’
सुरंगमा का रूखा स्वर उन्हें और भी वाचाल बना गया।
‘‘आई सी, आई सी—आपका उनसे पुराना परिचय है शायद !’’
उनकी गिद्ध दृष्टि में कुतूहल की सहस्र किरणें एक साथ फूट उठीं। उस अभद्र प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही सुरंगमा फिर लॉन के सीमान्तर पर लगे एक पाम के वृक्ष की सुबृह्त छाया में खड़ी हो गई। वहीं पर अर्धवृत्ताकार घेरे में बैठी देहाती महिलाओं की कई जोड़ी आंखें उसे बड़े विस्मय से घूरने लगीं। उनमें से एक के हाथ में एक लम्बा-सा कागज़ था, लगता था वही उस दल का नेतृत्व कर रही है और अपनी कोई दरख्वास्त लेकर मंत्री जी से मिलने आई है। वह उस भीड़ से भी दूर छिटककर बरामदे की ओर बढ़ रही थी कि एक नाटा-सा व्यक्ति मिलनेवालों की भीड़ में ही उसे ढूँढ़ता उसकी ओर चला आ रहा था, ‘‘क्षमा कीजिएगा, आपको रुकना पड़ा। मैं मंत्रीजी का पी.ए. हूँ बड़ी देर से आपको ढूँढ़ रहा था, आप यहाँ क्यों खड़ी रह गईं। आइए, आइए, मन्त्रीजी आपसे अन्दर कमरे में मिलेंगे।’’
वह बिना कुछ कहे उनके साथ-साथ चलने लगी। एक बार फिर दौड़कर घर भाग जाने की तीव्र इच्छा उसके अन्तर्मन को झकझोर उठी। क्यों आ गयी थी वह यहाँ ? कैसी भीड़ थी, लग रहा था मिलनेवालों की भीड़ निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। देखे ही देखते कितनी ही रंग-बिरंगी कारें, वर्दीधारी पुलिस अफसर, महिलाएँ बरामदा घेरकर खड़ी हो गईं, कोई चादर ओढ़े निपट देहातिन, कोई मलिन बुर्काधारिणी, कोई ओंठों को रँगे बटुआ झुलाती अधैर्य से घड़ी देख रही थी, कोई झकाझक स्वच्छ बगुला के पंख-सी श्वेत साड़ी में समाज-सेवा की जीवन्त विज्ञापन बनी बड़ी अन्तरंगतापूर्ण अधिकार से पी.ए. से पूछ रही थी, ‘‘अरे भाई कब मिलेंगे दिनकर जी ? कल तो फोन पर सुबह ही चले आने को कहा था उन्होंने….’’
कितनी खद्दर की तिरछी टोपियाँ थीं—कितने खद्दर के कुर्ते, पान से रँगी कितनी कुटिल बत्तीसियाँ।
पी.ए. उसे एक सुदीर्घ, टेढ़ी-मेढ़ी सँकरी गैलरी से ले जाता अनर्गल बोलता चला जा रहा था, ‘‘असल में आज मन्त्री जी का एकदम ही पैक्ड प्रोग्राम है, दो-दो यूनिवर्सिटियों के अध्यापकों के दो डेप्यूटेशन आए हैं, उधर तीन बजे एक मीटिंग है, दस बजे एक अस्पताल का उद्घाटन करने सीतापुर जाना है। इसी से कहने लगे, यहीं बुला लो —शेव कर रहे हैं, खास मिलनेवालों को हमेशा वहीं बुलाते हैं। आप एक सेकेंड रुकें, मैं खबर कर आऊँ।’’
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2009 |
Pulisher |
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