Suryaast Ke Baad
Suryaast Ke Baad
₹300.00 ₹299.00
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Author: Pushpa Saxena
Pages: 125
Year: 1994
Binding: Hardbound
ISBN: 0
Language: Hindi
Publisher: Yatri Prakashan
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Description
सूर्यास्त के बाद
पूर्णिमा के घर पहुँच चम्पा जी गई थी। घुटने चलता पप्पू मानो घर के कोने-कोने से परिचित हो रहा था। चम्पा ने पूर्णिमा के घर के कामों को सम्हाल दिया था और पूर्णिमा ने उसके पप्पू का भार अपने ऊपर ले लिया था। पूणिमा उस नन्हे शिशु को ले इस कदर व्यस्त हो गई थी कि अरविंद को ठोकना पड़ा था – “देखो पूर्णिमा, तुम्हें इस लड़की के साथ सहानुभूति है वहाँ तक तो ठीक है पर तुम इसके बच्चे के मोह में बंध रही हो, यह ठीक नहीं। अन्ततः यह पराया खून है…कभी न कभी इसे यहाँ से चले ही जाना है न ?’’
“पुरुष के अहं को जानती है न काजल ? पत्नी उसे परमेश्वर मान पूजती रहे, यह उसका प्राप्य है, पर अगर पत्नी उसे छोड़ अन्य का वरण कर ले तो ?… नहीं सह पाएगा उसका अहं – वही मैंने चाहा था। अतुल अपनी इस पराजय को कभी नहीं भुला सकेगे, हमेशा फाँस-सी गड़ती रहेगी उनके मन में।”
– इसी पुस्तक से
अनुक्रम
- सूर्यास्त के बाद
- परिष्कार
- सिस्टर रोजी
- कर्ज
- उमा दी
- फूलों का अभियोगी
- अपनों जैसा
- फाँस
Additional information
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 1994 |
Pulisher |
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