Svadheenata Ke Path Par
Svadheenata Ke Path Par
₹150.00 ₹145.00
₹150.00 ₹145.00
Author: Gurudutt
Pages: 302
Year: 2004
Binding: Hardbound
ISBN: 0
Language: Hindi
Publisher: Hindi Sahitya Sadan
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Description
स्वाधीनता के पथ पर
टन……टन……टन……..टन……..। मन्दिर का घण्टा बज रहा था। देवता की आरती समाप्त हो चुकी थी। लोग चरणामृत पान कर अपने-अपने घर जा रहे थे। श्रद्धा, भक्ति, नमृता और उत्साह में लोग आगे बढ़कर, दोनों हाथ जोड़, मस्तक नवा, देवता को नमस्कार करते और हाथ की अंजुली बना चरणामृत के लिए हाथ पसारते थे। पुजारी रंगे सिर, बड़ी चोटी को गाँठ दिये, केवल रामनामी ओढ़नी ओढे़, देवता के चरणों के निकट चौकी पर बैठा अरघे से चरणामृत बाँट रहा था।
पुजारी जब चरणामृत देता था तो आँखें नीची किये रखता था। उसकी दृष्टि अधिक-से-अधिक लोगों के हाथों पर ही जाती थी। धीरे-धीरे सब लोग चले गये। पुजारी यद्यपि लोगों को देख नहीं रहा था, पर अनुभव कर रहा था कि उसका काम समाप्त हो रहा है। अकस्मात् उनकी दृष्टि एक स्त्री के हाथों पर पड़ी। ये हाथ भी चरणामृत पाने के लिए ही आगे बढ़े थे। इन हाथों को देखते ही पुजारी के हाथ काँपने लगे। अरघा चरणामृत सहित उसके हाथ से याचक के हाथों में गिर गया।
पुजारी ने अरघे को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, परन्तु तब तक वे हाथ पुजारी की पहुँच से दूर हो चुके थे। पुजारी ने आँख उठाकर स्त्री को देखना चाहा, परन्तु स्त्री घूम गयी थी और पुजारी की ओर उसकी पीठ थी। वह चरणामृत पी रही थी। उसने चरणामृत पिया और अरघे को अपनी साड़ी के आँचल में छिपा लिया। इसके बाद पीछे की ओर देखे बिना वह मन्दिर से बाहर निकल गयी। पुजारी हाथ फैलाये, अवाक् मुख मन्दिर से बाहर जाती हुई स्त्री की पीठ देखता रह गया। ऐसा प्रतीत होता था कि वह अरघा माँगना चाहता है, परन्तु मुख से शब्द नहीं निकलता।
जब स्त्री आँखों से ओझल हो गई तो पुजारी की बुद्धि ठिकाने आई। उसे अपने हाथ फैलाने पर लज्जा प्रतीत हुई। उसने तुरन्त हाथ समेट लिये और मन्दिर में, चारों ओर देखकर, मन-ही-मन कहा, ‘ओह ! चलो किसी ने देखा नहीं।’
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
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Publishing Year | 2004 |
Pulisher |
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