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Description
स्वधर्म स्वराज और रामराज्य
भारतीय चिन्तन परम्परा का पारमार्थिक चिन्तन समस्त मानव समाज के परम कल्याण का चिन्तन है। अपने इसी वैशिष्ट्य के कारण आज भी यह वैश्विक आकर्षण का विषय बना हुआ है। प्रस्तुत पुस्तक ‘स्वधर्म, स्वराज और रामराज्य’, तुलसीदास और महात्मा गांधी के मन्तव्यों को विशेष सन्दर्भ में रखते हुए स्वधर्म, स्वराज और रामराज्य जैसे व्यापक पदों तथा अवधारणाओं को समकालीन परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयत्न है। पुस्तक में चार अध्याय और बारह उप अध्याय हैं। पुस्तक का आरम्भ ‘भारतीय चिन्तन परम्परा का साक्षात्कार’ नामक अध्याय से होता है। इसमें भारतीय चिन्तन परम्परा का पर्यवेक्षण है और उसके मूल आशयों को समझने का प्रयत्न भी। इस चिन्तन में मनुष्य जाति के अमृत-तत्त्व की खोज है और उसके परमोत्कर्ष की सम्भावनाओं का विवेचन भी। यह प्रक्रिया चारों वेद, ब्राह्मण और आरण्यक ग्रन्थों से लेकर उपनिषदों तक चलती है जिसका मूल सूत्र है- ‘महामना स्यात् तद् व्रतम्’ यानी मनुष्य को महामना होना चाहिए, यही उसका व्रत है। छान्दोग्य उपनिषद् का यह सूत्र, जो ऋग्वेद के चिन्तन का सार है; आगे के आर्ष ग्रन्थों- रामायण, महाभारत, गीता, पुराण तथा रामचरितमानस में विवेचित होता है। तुलसीदास और महात्मा गांधी के चिन्तन के मूल में यही सूत्र है जिसकी व्याख्या वे अपने-अपने ढंग से करते हैं। इस चिन्तन का आत्यन्तिक लक्ष्य ‘स्वराज’ की प्राप्ति है जो मनुष्य के’ आत्मप्रकाश’ का द्योतक है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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