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Description
स्वर्ग की झलक
‘स्वर्ग की झलक’ सामाजिक विडम्बनाओं, विशेषकर आधुनिक जीवन में प्राय: दिख जाने वाले विपर्यय पर प्रहार करने वाला नाटक है। यह व्यंग्यात्मक अन्दाज़ में आधुनिकता और परम्परा की टकराहट को दिखलाता है, जो लोगों को एक अजीब-सी अस्थिरता की तरफ़ धकेल देती है। वर्तमान शिक्षा व्यक्ति को आधुनिक रहन-सहन और मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है, इसका आकर्षण अथवा दबाव कई बार इतना अधिक होता है कि व्यक्ति यह भूल जाता है कि उसको सिर्फ़ ख़ुद आगे नहीं जाना है बल्कि घर-परिवार-समाज को भी ले जाना है, जिसके लिए उसकी गति-मति में एक सन्तुलन, एक धैर्य और व्यावहारिकता का होना जरूरी है; इनका अभाव उसे निर्णायक ढंग से पछाड़ सकता है। जाहिर है, नाटककार का उद्देश्य, शिक्षा और आधुनिकता का विरोध करना नहीं है बल्कि उसके रास्ते में आने वाले अवरोधों से आगाह करना है।
नाटककार ने स्वयं कहा है कि ‘आज हम एक परिवर्तनकाल से गुज़र रहे हैं जिसमें शिक्षा के साथ बेकारी बढ़ती जाती है, हमारे युवक शिक्षित तो हो गए हैं, पर अपने संस्कारों को पूर्ण रूप से बदल नहीं पाए।’ इसलिए उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ इस जीवन की कठिनाइयों के लिए भी अपने आप को तैयार करना चाहिए।
आधुनिक शिक्षित लड़कियों के एक वर्ग की मनोवृत्ति पर व्यंग्य के साथ-साथ यह नाटक मध्यवर्ग के भीरु युवक की अस्थिर-चित्तता की भी खबर लेता है जो शिक्षित नारी की ओर बढ़ता भी है और उससे डरता भी है।
एक अत्यन्त मनोरंजक और अन्तर्दृष्टि पूर्ण नाटक।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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