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Description
स्वर्णिम सूक्तियाँ
जीवन के विविध रसों का सार तत्व
अनुभवों के विस्तार को संजोकर रखा नहीं जा सकता। बुद्धि उसे सूत्र और प्रतीक रूप में स्मृति पटल पर उकेरती है। यह कहा जाए कि यह प्रक्रिया बीज से वृक्ष और फिर वृक्ष से बीज रूप में परिवर्तित होने की है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आपने मधुमक्खियों को देखा होगा, जो बाग-बाग घूम-घूमकर एक-एक फूल से मधु को इकट्ठा करती हैं। इसी प्रकार विद्वान एवं स्वाध्याय प्रेमी अन्य के अनुभव-सार को मोतियों की तरह एकत्रित करते हैं और उन्हें पिरोकर एक ऐसी बेशकीमती माला गूंथ लेते हैं, जिसकी आभा का प्रकाश जिज्ञासु श्रोताओं-पाठकों को एक सुनिश्चित दिशा प्रदान करता है।
आत्मविकास की साधना में इन सूक्तियों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। कभी-कभी कोई एक सूक्ति जीवन की दशा और दिशा दोनों को बदल देती है। ये सूक्तियां अकसर उस डंडे जैसा काम करती हैं, जो आपके विचारों की गुल्ली पर पहली चोट करके उसे ऊपर उछालता है और फिर दूसरी चोट से उसे उन ऊंचाइयों को छूने को विवश कर देता है, जिस ओर उसकी सामान्य स्थिति में गति होनी संभव नहीं थी।
हमें पूर्ण विश्वास है कि ये सूक्तियां आपके जीवन को एक नई दिशा तो देंगी ही, आपके मन में अपने उन पूज्य ग्रंथों को पढ़ने की जिज्ञासा भी जाग्रत करेंगी, जिन्हें हमने प्राचीन कहकर अनुपयोगी मान लिया है।
आपकी जीवन साधना उत्तरोत्तर उन्नत हो, यही शुभकामना है।
– प्रकाशक
ॐ
समर्पित है यह पुस्तक उन मनीषियों के श्रीचरणों में जिन्होंने ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ के इस सद्संकल्प को पूरा करने के लिए अपने जीवन के भौतिक सुखों का परित्याग किया जिन्होंने आसुरी वृत्तियों को समाप्त करने के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया।
दो शब्द
संस्कृत साहित्य में सूक्तियों का बहुत बड़ा महत्व है। मानव-मन के प्रत्येक पहलू पर आपको अनेक सूक्तियां प्राप्त हो सकती हैं। वस्तुतः सूक्तियां उन शक्तिशाली एवं प्रभावशाली तीरों के समान हैं जो मानव के हृदय पर सीधा प्रहार करती हैं। ये ‘गागर में सागर’ की तरह हैं। इनमें विचारों का असीम भंडार होता है। जो बात किसी व्यक्ति को साधारण भाषा में समझाने पर उसकी समझ में नहीं आती, वही बात सूक्तियों द्वारा तत्काल समझ में आ सकती है। यो ऐसी चेतावनी होती हैं जिन्हें कतई उपेक्षित नहीं किया जा सकता।
सूक्तियों में एक व्यवहार कुशलता होती है। इनमें आदेश और निर्देश की भावना निहित होती है। इसीलिए वे मानव-हृदय के तारों को झनकारकर रख देती हैं। तब मनुष्य का मन क्रियाशील हो जाता है। उसके उदासीन, उत्साहित एवं दीन-हीन मन पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि कुंठा और संत्रास के सभी भाव तिरोहित हो जाते हैं। इन्हें सुनकर कंजूस दानवीर बन जाता है। पापी व्यक्ति पाप छोड़कर पुण्यात्मक हो जाता है। कायर मनुष्य शूरवीर बन जाता है। यही कारण है कि सूक्तियां सामाजिक सुधार में लगे हर वर्ग के लोगों के बहुत काम आती हैं।
इस पुस्तक में हम कुछ ऐसी ही सूक्तियां प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्हें आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने समय-समय पर अपने प्रवचनों में उद्धृत किया है। ये सूक्तियां वेद, पुराण, वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस, महाभारत, मनुस्मृति, बुद्ध चरित, कुलार्णव तंत्र, तुलसी सतसई, दोहावली, चाणक्य नीति तथा उत्कृष्ट ग्रंथों से ली गई हैं। हमें विश्वास है कि इन्हें पढ़कर आपका ज्ञानवर्धन अवश्य होगा।
– गंगा प्रसाद शर्मा
मधुमक्खियां बड़ी लंबी-लंबी यात्राएं करती हैं मधुसंचय करने के लिए। इतना कठोर श्रम करते समय उनके मन में यह भावना नहीं होती कि मधु का उपयोग वे ही करेंगी। कठोर श्रम और निष्काम भावना ही मधु में अमृत तुल्य मधुरता और पावनता प्रदान करती है। ऐसे ही जिस व्यक्ति के जीवन में कठोर श्रम और दूसरों के जीने के लिए जीने की भावना है वह लौकिक स्तर पर तो लोगों के रोगों को समाप्त करता ही है, उन्हें पावन भी बना देता है अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ सिमट जाते हैं उसमें।
Additional information
Binding | Paperback |
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Language | Hindi |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher | |
Authors |
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