Tat Ke Bandhan

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Tat Ke Bandhan

Tat Ke Bandhan

225.00 185.00

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Author: Vishnu Prabhakar

Availability: 5 in stock

Pages: 160

Year: 2011

Binding: Hardbound

ISBN: 9788188466597

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

तट के बंधन

नीलम बोली, “जीजी, नारी क्या विवाह के बिना कुछ नहीं है ?”

“नारी विवाह के बिना भी नारी है। सरला पर जो कुछ बीती है, उसका कारण मात्र विवाह नहीं है, डर भी है। कहूँगी, वही है।”

नीलम ने कुछ जवाब नहीं दिया। उसे लगा, जैसे यही डर उसके भीतर भी कुंडली मारे बैठा है।

शशि फिर बोली, “स्त्री शक्ति और शाप दोनों है। विवाह इन दोनों अतियों के बीच का मार्ग ढूँढ़ने का एक साधन है। युग-युग से इस क्षेत्र में प्रयोग हुए हैं, पर स्त्रीत्व को कोई नहीं मिटा सका, क्योंकि स्त्रीत्व के बिना मातृत्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जब तक स्त्रीत्व है, विवाह है।”

नीलम ने इस बार भी कुछ जवाब नहीं दिया। शशि ने ही फिर कहा, “स्त्रीत्व का सही प्रयोग नारी का अधिकार है और अधिकार का प्रयोग सबसे बड़ा कर्तव्य है।”

नीलम उसी तरह मौन रही। शशि तब तड़पकर बोली, “बोलती क्यों नहीं ?”

नीलम ने कोई जवाब देने की चेष्टा नहीं की। उसकी आँखों से आँसू गिरते रहे। उन्हें भी उसने नहीं पोंछा। पर दो क्षण बाद शशि फिर बोली, “मुझे ये आँसू अच्छे नहीं लगते नीलम ! यही शक्ति लेकर क्या कुछ करने की चाह रखती है ? मंत्र तो मात्र आवरण है। जड़ में तो स्त्री का स्त्रीत्व और पुरुष का पुरुषत्व कसौटी पर है। हमें उस पर नहीं, मंत्रों की शक्ति पर प्रहार करना है, जो पुराने पड़ गए हैं। स्वतंत्र भारत में इतना भी नहीं कर पाई तो उस स्वतंत्रता का क्या लाभ ?”

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2011

Pulisher

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