Thami Hui Barish Mein Dophar

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Thami Hui Barish Mein Dophar

Thami Hui Barish Mein Dophar

199.00 149.00

In stock

199.00 149.00

Author: Savita Bhargav

Availability: 5 in stock

Pages: 136

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9788119835577

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

थमी हुई बारिश में दोपहर

अग्रणी हिन्दी कवि सविता भार्गव का नया संग्रह ‘थमी हुई बारिश में दोपहर’ स्त्री-कविता के क्षेत्र में ही नहीं वरन् समकालीन भारतीय कविता के क्षेत्र में भी एक नया प्रस्थान माना जा सकता है। स्त्री-जीवन के अनेकानेक अनदेखे, अनछुए प्रसंगों, अनुभवों और जटिलताओं से समृद्ध यह संग्रह अपने ताप, ताज़गी और त्वरा के लिए एक विलक्षण संग्रह के रूप में स्थापित होगा। प्रेम, दाम्पत्य, कुटुम्ब, समाज और राजनीति सब मिलकर एक नया रसायन बनाते हैं। बिना किसी दुराव के, बिल्कुल अकुंठ भाव से कवि ने अनेक तरह के सम्बन्धों का उद्घाटन किया है। और ये सम्बन्ध इकहरे नहीं हैं। एक आरम्भिक कविता में सविता भार्गव कहती हैं : ‘तुम कल्पना करो/मैं तुम्हारी नई प्रेमिका हूँ/और रच डालो/शमशान तक पहुँचने के/सारे दृश्य’।

यहाँ ‘शमशान’ का हठात् प्रयोग इस कविता को स्त्री-पुरुष सम्बन्धों से परे एक वृहत्तर अर्थ देता है। प्रेम की ऐसी कविताएँ न तो देह पर रुकती हैं न देह का लोप करती हैं, बल्कि देह और जीवन की अन्तिम परिणति तक ले जाती हैं। ‘मैं जाग रही हूँ किसके लिए’ सरीखी कविताओं में भी इसे देखा जा सकता है। इसके दूसरे छोर पर ‘इस्तरी करती स्त्री’ को रखा जा सकता है जहाँ एक स्त्री- देह की स्वायत्तता व्यक्त होती है। इसके बरअक्स ‘अविराम घूमती पृथ्वी की तरह’ स्त्री-पुरुष के योग को तलाशती एक अद्भुत कविता है। पूरा संग्रह ऐसी कविताओं का अक्षय-कोश है।

लेकिन जिन कविताओं को समकालीन हिन्दी कविता की उपलब्धि कहा जा सकता है वे हैं ‘अनुभव’, ‘यौवन बीत गया’ और ‘माँ वापस जा रही है’।

सिनेमा का सीन करते हुए/थोड़ी सी झिझक से/कैमरे के सामने खड़ी होती हूँ/क्योंकि कैमरा पूरा समाज है/और मैं अकेली स्त्री हूँ/पसीना पोंछते और मेकअप धोते हुए/मैं शामिल हो जाती हूँ/समाज में। (अनुभव)

कुछ दिन बेटी के घर में रहने के बाद माँ वापस जा रही है और बेटी के ‘भीतर कुहरा बैठ रहा है’। यह एक अविस्मरणीय मार्मिक कविता है जो केवल एक स्त्री की लेखनी ही रच सकती थी। लेकिन जिस कविता ने मुझे रोक लिया वो है ‘यौवन बीत गया’। शायद ऐसी कविता पहले नहीं लिखी गयी समकालीन भारतीय साहित्य में।

खेल जो मैंने खेले/लगते आज वे कितने अधूरे/डूबा दिन/रातें रहीं नहीं चाँदनी/बारिश बीती/चींटियाँ खोद रहीं/फिर से मिट्टी/मेरी मिट्टी होती/चींटियों जैसी

यह संग्रह अपने सर्वथा नए बिम्बों, लयों और भावों के लिए समादृत होगा। ‘मेरे होंठ की फाँक जैसा टेढ़ा चाँद’ कितना नया बिम्ब है ! ‘थमी हुई बारिश में दोपहर’ अपने आप में जीवन के द्वन्द्व और द्विगु का विलक्षण रूपक है।

अरुण कमल

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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