Tinka Tinka Aag

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Tinka Tinka Aag

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175.00 150.00

In stock

175.00 150.00

Author: Jaiprakash Kardam

Availability: 5 in stock

Pages: 79

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9789389220285

Language: Hindi

Publisher: Aman Prakashan

Description

तिनका तिनका आग

दलित साहित्य में सदियों से बहते जख्मों को दर्ज किया जाता रहा है। विशेष रूप में दलितों के द्वारा भोगे हुए अनुभव और जातिवादी चित्रों का बेबाकी से चित्रण भी हुआ है। वरिष्ठ कवि और लेखक जयप्रकाश कर्दम लम्बे समय से दलित आन्दोलन से जुड़े रहे हैं। उनके इस कविता संग्रह ‘तिनका तिनका आग’ में हमें भूख, यंत्रणा, सांप्रदायिकता, उत्पीड़न और जातिभेद का बेबाकी से वर्णन मिलता है। साथ ही उनकी कविताओं में दलितों की अस्मिता से जुड़े सवाल उभरते हैं। जो इस बात के चश्मदीद गवाह हैं कि नई सदी में भी दलितों की अस्मिता को ठेस पहुँचाने में मनुवादी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

कवि के सामने एक लक्ष्य है, उसी की उर्जा से यथार्थ के आस-पास इन कविताओं की बुनावट मिलती है। कविताओं में जहाँ पत्थरों से जद्दोजहद मिलती है वहीं अन्याय के प्रतिष्ठानों पर कर्दम जी ने चोट की है। कवि ने ब्राह्मणवाद पर चोट करने के साथ-साथ ऐसे दलितों से भी संवाद स्थापित करने का प्रयास किया है जिन्होंन बाबा साहेब डा. अम्बेडकर को भगवान बना लिया है।

कर्दम जी की कविताओं में परिवर्तन की गूँज है। वे बदलाव के लिए उत्सुक दिखाई पड़ते हैं। कवि के भीतर आर्यों का छल और कपट से भरा इतिहास भी जिंदा है और सवर्णो की प्रपंच की राजनीति भी। इनकी कविताओं में लगता है जैसे दलितों की पीड़ा उभर आई है। जहाँ आर्यों ने शंबूक और एकलव्य को छला वहीं बाबू जगजीवन राम भी हिंदुओं की जातिवादी राजनीति से बच नहीं पाए।

इस कविता संग्रह को पढ़ने से अहसास होता है कि इन कविताओं के केन्द्र में कहीं न कहीं दलित अपने पाँवों पर खड़ा है और जद्दोजहद से अपनी बात कहने पर उतारू है। स्वयं कवि के भीतर द्वंद्व है, लेकिन वह उस द्वंद्व से उबर भी रहा है। तभी तो वह लिखता है कि ‘मैं बनारस जाऊँगा’। हालांकि उसे मालूम है कि बनारस पण्डों, पुरोहितों का शहर है।

कर्दम जी की इन कविताओं में सीधी-सपाट भाषा है। प्रतीक, प्रतिबिम्बों में उलझाव नहीं है। वे समझ आते हैं। संक्षेप में कहें तो इस कविता-संग्रह में बदलाव की तलाश है, जो दलितों की नई पीढ़ी को संघर्ष करने के लिए प्रेरणा देता है। आज आर्यों के वंशज दलितों को तिनका-तिनका करने पर तत्पर हैं। लेकिन दलितों के भीतर डॉ. अम्बेडकर के रूप में उगता सूरज मनुवादियों को जलाने/झुलसाने हेतु कटिबद्ध भी है।

– मोहनदास नैमिशराय

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Binding

Hardbound

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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