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तिरोहित
गीतांजलि श्री के लेखन में अमूमन, और तिरोहित में ख़ास तौर से, सब कुछ ऐसे अप्रकट ढंग से घटता है कि पाठक ठहर से जाते हैं। जो कुछ मारके का है, जीवन को बदल देने वाला है, उपन्यास के फ्रेम के बाहर होता है। जिन्दगियाँ चलती–बदलती हैं, नए–नए राग–द्वेष उभरते हैं, प्रतिदान और प्रतिशोध होते हैं, पर चुपके–चुपके। व्यक्त से अधिक मुखर होता है अनकहा। घटनाक्रम के बजाय केन्द्र में रहती हैं चरित्र–चित्रण व पात्रों के आपसी रिश्तों की बारीकियाँ। पैनी तराशी हुई गद्य शैली, विलक्षण बिम्बसृष्टि और दो चरित्रों ललना और भतीजा के परस्पर टकराते स्मृति प्रवाह के सहारे उद्घाटित होते हैं तिरोहित के पात्र उनकी मनोगत इच्छाएँ, वासनाएँ व जीवन से किए गए किन्तु रीते रह गए उनके दावे।
अन्दर–बाहर की अदला–बदली को चरितार्थ करती यहाँ तिरती रहती है एक रहस्यमयी छत। मुहल्ले के तमाम घरों को जोड़ती यह विशाल खुली सार्वजनिक जगह बार–बार भर जाती है चच्चो और ललना के अन्तर्मन के घेरों से। इसी से बनता है कथानक का रूप। जो हमें दिखाता है चच्चो/बहनजी और ललना की इच्छाओं और उनके जीवन की परिस्थितियों के बीच की न पट सकने वाली दूरी। वैसी ही दूरी रहती है इन स्त्रियों के स्वयं भोगे यथार्थ और समाज द्वारा देखी गई उनकी असलियत में। निरन्तर तिरोहित होती रहती हैं वे समाज के देखे जाने में। किन्तु चच्चो/बहनजी और ललना अपने अन्तर्द्वन्द्वों और संघर्षों का सामना भी करती हैं। उस अपार सीधे–सच्चे साहस से जो सामान्य जिन्दगियों का स्वभाव बन जाता है।
गीतांजलि श्री ने इन स्त्रियों के घरेलू जीवन की अनुभूतियों रोजमर्रा के स्वाद, स्पर्श, महक, दृश्य को बड़ी बारीकी से उनकी पूरी सैन्सुअलिटी में उकेरा है। मौत के तले चलते यादों के सिलसिले में छाया रहता है निविड़ दुःख। अतीत चूँकि बीतता नहीं, यादों के सहारे अपने जीवन का अर्थ पाने वाले तिरोहित के चरित्र ललना और भतीजा अविभाज्य हो जाते हैं दिवंगत चच्चो से और चच्चो स्वयं रूप लेती हैं इन्हीं यादों में।
Additional information
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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