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Description
त्रिया चरित्रं : उत्तर काण्ड
स्त्री विमर्श की अब हिंदी लेखन में सम्मानजनक व विचारोत्तेजक उपस्थिति है। हिंदी की प्रमुख कवियित्री उपन्यासकार अनामिका की यह पुस्तक भी नारीवाद की कई बारीक और अनकही चिंताओं को हमारे सामने खोलती है। किताब अपने सघन तो के बल पर सिद्ध करती है कि नारीवाद स्वयं में नारा, आंदोलन, विश्लेषण का औजार और साहित्यिक सिद्धांत सभी कुछ रहा है। अब वह विकास के उस दौर में है जब उसकी शक्ति को किन्हीं फैशनेबल मुहावरों या चंद घिसे-पिठे आरोपों के बल पर सीमित करने संबंधी प्रयासों से उसकी सक्रियता को नष्ट करना लगभग नामुमकिन हो चला है। अनामिका ने एक विस्तृत : संसार को हमारे सामने रखा है जहां स्त्रियों का नहीं बल्कि स्त्री-विरोधी छवियों का सशक्तीकरण किया जाता है और इससे संघर्ष के लिए मिथक, कला, शिक्षा जगत व इतिहास सभी के साथ एक बौद्धिक जिरह का रिश्ता बनाना अनिवार्य हो गया है। लेखिका इस यथार्थ के प्रति हमें संवेदनशील बनाती है कि नए विकसित होते यौन-उद्योगों के समय में देह उसके शोषण का मुख्य स्थल है। मूंछों पर ताव देने वाला मर्द हमेशा की तरह हर कहीं उसका पीछा कर रहा है। इसलिए स्त्रियों के लिए उनकी स्वतंत्रता को अबाधित रखने वाले अधिक महफूज और न्यायप्रिय प्रतिसंसार की कल्पना नारीवाद का मुख्य तर्क है। यह वह संसार भी होगा जहां ‘बिचारी अबला’ या ‘अच्छी लड़की’ होने के प्रमाणपत्र उसके लिए गैरजरूरी हो जाएं और वह अपनी देह को फिर से अपने नियंत्रण में ले सके।
पुस्तक दिखाती चलती है कि औरतों की गढ़ंत (कंस्ट्रक्ट) के लिए वर्ग, वर्ण और नस्ल के उपकरणों का इस्तेमाल भी होता है और इसी प्रकार नारीवाद भी ‘मोनोलिथ’ नहीं है बल्कि उसके कई आयाम हैं और उन्हें सही संदर्भों में पेश करने की जरूरत है। अनामिका की यह पुस्तक अपनी दिलचस्प शैली, पठनीयता व सटीक उदाहरणों के बल पर लंबे समय तक पाठकों के बीच सराही जाने की क्षमता रखती है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2012 |
Pulisher |
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