- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
तुलसीदास का स्वप्न और लोक
तुलसीदास हिन्दी ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं की विशिष्ट काव्य प्रतिभाओं में एक थे। हिन्दी जनमानस में जैसी स्वीकृति तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ की है, वैसी कम ही ग्रन्थों को मिलती है; विद्वानों का एक बड़ा वर्ग ‘कवितावली’ और ‘विनयपत्रिका’ को विशिष्ट मानता है-इसमें निहित व्यक्तिचेतना के कारण; इन सबके आगे बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग है जो तुलसीदास को प्रतिक्रियावादी मानता है, ब्राह्मणवादी मानता है। इन सहमतियों-असहमतियों के वृहत् दायरे में तुलसी-साहित्य के विवेचन की अनेक कोशिशें हुई हैं। इन विवेचनों में जो मूल्य उभरे हैं, जो स्थापनाएँ निःसृत हुई हैं, उनमें भी पर्याप्त सहमति-असहमति हैं।
इन सहमतियों-असहमतियों के बीच और उसके बावजूद, एक पाठक के रूप में हमारे आश्चर्य का विषय है रामकथा का विस्तार; काल और बोध, रचनाकारों के कथा के प्रति आकर्षण और पाठकों तथा श्रोताओं की कथा के प्रति आस्वादमूलक रुचि…इस विस्तार के पक्ष में अनेक ऐसे ही द्वित्व बनाये जा सकते हैं। तुलसीदास के लगभग सारे ग्रन्थ-चाहे वह अवधी में हो या ब्रजभाषा में-रामकथा पर आश्रित हैं। तुलसीदास के लिए यह शायद धार्मिक ज्यादा भक्त की गहरी आस्था का मामला हो। पर आज का बौद्धिक और तुलसीदास का गम्भीर अध्येता, उनके साहित्य को धार्मिक या भक्तिपरक सन्दर्भों में शायद ही देखेगा। ‘तुलसीदास का स्वप्न और लोक’ भी ऐसी ही पुस्तक है। पुस्तक के लेखक ज्योतिष जोशी ने स्पष्टतः लिखा है – ‘‘मेरे लिए ‘मानस’ श्रद्धा-भक्ति का ग्रन्थ उतना कभी न रहा जितना विशुद्ध धार्मिक अवलम्बियों के लिए है, पर मैंने हमेशा उसे एक जीवन-ग्रन्थ की तरह पढ़ा है।’’
यह पुस्तक बड़े विस्तार से तुलसी-साहित्य का गम्भीर अध्ययन प्रस्तुत करती है। एक आधुनिक पाठक की तरह लेखक ने अनेक प्रश्न खड़े किये हैं और अनेक प्रश्नों का उत्तर देने की गम्भीर कोशिश की है। लेखक की कोशिश अन्तिम तो नहीं है और न होगी, पर हस्तक्षेपक अवश्य है। इसके लिए उन्होंने शोध और आलोचना का समेकित और सन्तुलित प्रयोग किया है।
एक और विशिष्टता की ओर बरबस हमारा ध्यान जाता है। जिन अवधारणाओं और टूल्स के सहारे तुलसीदास के साहित्य को व्याख्यायित-विश्लेषित किया गया है, वे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। तुलसीदास का साहित्य पढ़ते हुए सिर्फ तुलसी-साहित्य लेखक के मस्तिष्क में नहीं है। सामाजिक, सांस्कृतिक और कला सम्बन्धी अनेक सन्दर्भ उसके विचार के टूल्स बनते हैं। इसलिए वे कहते हैं, ‘‘भक्ति-आन्दोलन का सामाजिक महत्त्व है और उसके पूरे प्रवाह में देशव्यापी वैचारिक अभिव्यक्तियों का भी, इसलिए तुलसीदास का काव्य अपनी पूरी संरचना में उसी अभिव्यक्ति का माध्यम बनता है जो भक्ति- आन्दोलन की बुनियाद में रही।’’
यह पुस्तक तुलसी-साहित्य के अध्ययन का गम्भीर प्रयास है। पाठक और आगे के अनुसन्धानकर्त्ताओं के लिए बेहद उपयोगी साबित होगी-ऐसा हमारा विश्वास है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.