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Description
उमराव जान ‘अदा’
उर्दू के आरंभिक उपन्यासों में अहम् स्थान रखता है। वस्तुतः यह आत्मकथात्मक उपन्यास है जिसे मिर्जा हादी ‘रुस्वा’ ने कलमबंद किया है। शायर होने के नाते लेखक तवायफ-शायर उमराव जान ‘अदा’ को काफी करीब से जनता था।
उमराव ने अपने संस्मरण स्वयं मिर्जा को सुनाए थे। फ़ैजाबाद की बच्ची ‘अमीरन’ के लखनऊ में तवायफ उमराव जान से शायरा ‘अदा’ बनने तक के सफ़र को समेटती हुई यह कथा उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की विडंबनाओ, विसंगतियों तथा अंग्रेजी दौर की तबाहियों का भी खाका खींचती है। अपने रूप-सौंदर्य, मधुर कंठ, नृत्य-कला, नफासत तथा अदबी तौर-तरीकों के कारण उमराव जान अमीरों-रईसों में ससम्मान लोकप्रिय रही। बचपन में ही बेघर हो जाने की वजह से ताउम्र वह मोहब्बत की तलाश में भटकती रही। उसने वे सारी त्रासदियाँ भोगीं जो एक संवेदनशील व्यक्ति के दरपेश होती हैं।
उपन्यास में भाषा का इस्तेमाल पत्र और परिस्थिति के अनुकूल है जो मार्मिक है और प्रभावशाली भी। उर्दू के अवधी लहजे की मिठास इसकी सबसे बड़ी खासियत है। अनुवादक गिरीश माथुर ने मूल भाषा की सजीवता बरकरार रखी है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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