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Description
उम्रकैद
महाश्वेता देवी की ख्याति प्रमुख रूप से उनके उन उपन्यासों के कारण है जिनमें उन्होंने आदिवासी जीवन और आदिवासियों के संघर्षों का अप्रतिम चित्रण किया है या फिर ‘हज़ार चौरासीवीं की माँ’ जैसे उन उपन्यासों की वजह से भी जो नक्सलबाड़ी के महान विप्लव की उपज हैं। लेकिन महाश्वेता देवी ने कई बार भारतीय जीवन के अन्यान्य पहलुओं पर नज़र डाली है और अपनी सुपरिचित शैली में – जो दलित-शोषित जनों के पक्ष को उजागर करती है – इन अभागों की व्यथा-कथा बयान की है।
‘उम्रकैद’ ऐसे ही तीन लघु उपन्यासों की श्रृंखला है, जिसमें महाश्वेता देवी ने ऐसे लोगों को जेल के अन्धकार से बाहर लाकर हमारे-आपके सामने पेश किया है जिन्हें ‘लाइफ़र’ कहते हैं – उम्रकैद पाये हुए क़ैदी जो कई बार चाल-चलन ठीक होने पर भी चौदह साल बाद रिहा नहीं हो पाते। कई कैदी रिहा होने पर बार-बार लौटते रहते हैं। कौन हैं ये लोग ? क्या हैं इनकी प्रेरणाएँ या दुष्प्रेरणाएँ ? सतीश हो या अबीर या अन्ना – इनके दुख बिलकुल अलग-अलग हैं।
महाश्वेता देवी ने उनकी कहानियाँ बयान करते समय अपनी सहानुभूति से भी काम लिया है और समझदारी से भी। तभी वे यह कह सकी हैं कि आज के समाज के नियन्ता ही असली हत्यारे हैं। ‘उम्रकैद’ – एक सूत्र में बँधे तीन ऐसे महत्त्वपूर्ण लघु उपन्यास हैं जो पाठक को अविचलित नहीं रहने देंगे।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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