Upnivesh Mein Stree

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Upnivesh Mein Stree

Upnivesh Mein Stree

695.00 525.00

In stock

695.00 525.00

Author: Prabha Khetan

Availability: 5 in stock

Pages: 231

Year: 2022

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126706815

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

उपनिवेश में स्त्री
यह किताब जीवन के दो पक्षों के बारे में है। एक स्त्री का और दूसरा अपनिवेश का। न इस उपनिवेश को समझना आसान है और न स्त्री नो। अगर यह उपनिवेश वही होता जिससे बीसवीं सदी के मध्य में कई देशों और सभ्यताओं ने मुक्ति पाई थी तो शायद हम इसे राजनीतिक और आर्थिक परतंत्रता की संरचना करार दे सकते थे। अगर यह उपनिवेश वही होता जिससे लड़ने के लिए राष्ट्रवादी क्रांतिय की गई थी और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की अवधारणा पेश की गई थी तो शायद हम इसके खिलाफ उपनिवेशवाद विरोधी प्रत्यय की रचना आसानी से कर सकते थे। यह उपनिवेश के नाम से परिभाषित हो चुकी अन्तराष्ट्रीय वित्तीय पूँजी की अप्रत्यक्ष हुकूमत भी नहीं है। यह तो अन्तराष्ट्रीय वित्तीय पूँजी, पितृसत्ता, इतरलिंगी यौन चुनाव और पुरुष-वर्चस्व की ज्ञानमीमांसा का उपनिवेश है जिसकी सीमाएँ मनोजगत से व्यवहार-जगत तक और राजसत्ता से परिवारतक फैली हैं।

दूसरे पक्ष में होते हुए भी स्त्री पाले के दूसरी तरफ नहीं है। वह उपनिवेश के बीच में कड़ी है। उपनिवेश के खिलाफ संघर्ष उसका आत्म-संघर्ष भी है और यही स्थिति स्त्री को समझने की मुश्कलों के कारण बनी हुई है। स्त्री मुक्ति-कामना से छटपटा रही है लेकिन उपनिवेश के वर्चस्व से उसका मनोजगत आज भी आक्रांत है। गुजरे जमानों के उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षों की तरह औरत की दुनिया के सिपहसालार उपनिवेश के साथ हाथ भर का वह अन्तराल स्थापित नहीं कर पाए हैं जो इस लड़ाई में कामयाबी की पहली शर्त है।

‘उपनिवेश में स्त्री : मुक्ति-कामना की दस वार्ताएं’ इस अन्तराल की स्थापना की दिशा में किया गया प्रयास है। ये वार्ताएं कारखाने और दफ्तर में काम करती हुई स्त्री, लिखती-रचती हुई स्त्री, प्रेम के द्वन्द में उलझी हुई स्त्री, मानवीय गरिमा की खोज में जुटी हुई स्त्री, बौद्धिक बनती हुई स्त्री और भाषा व विमर्श के संजाल में फंसी हुई स्त्री से सम्बन्धित हैं।

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

Language

Hindi

2 reviews for Upnivesh Mein Stree

  1. 4 out of 5

    डॉ इन्दु बाला हरिसिंह गढ़वी

    मुझे इसका मूल तथ्य बहुत अच्छा लगा, सालों से दबाई गई स्त्रियां की आवाज है ये।

  2. 5 out of 5

    डॉ इन्दु बाला हरिसिंह गढ़वी

    बहुत बढ़िया विषय वस्तु
    हजारों साल से दबाई गई स्त्रियां की आवाज है ये
    धन्यवाद


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