Uttradhikar Banam Putradhikar
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Description
उत्तराधिकार बनाम पुत्राधिकार
ञमातृत्व अगर स्त्री की सार्थकता है तो बेड़ियाँ भी कम नहीं हैं। मान बनना या न बनना उसका अधिकार हैं लेकिन ‘न्यायिक सक्रियता’ के इस दौर में भी न्यायमूर्तियों का कहना है कि पति की सहमती के बिना गर्भपात करवाना, पत्नी द्वारा पति पर की गई ‘मानसिक क्रूरता’ है। तलाक…तलाक…टलाक…। समझाना आसन नहीं कि वास्तव में कौन, कितना क्रूर है। क्यों ? यह तो मेरे समय की स्त्री ही जानती है या ‘स्त्री का समय’। वह जब भी कहती है, “यह मेरा शरीर है। इसके बारे में फैसला करने का अधिकार भी मुझे ही होना चाहिए, ‘‘तो पितृसत्ता समझती है, “महिलाएं घरों में जाकर (रहकर) बच्चे पालें, क्योंकि मातृत्व से बड़ा कोई सुख नहीं।’’ बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निर्मित गोरेपन की क्रीम और पिताश्री के परिवार वापसी के अर्थ बेचती विश्व सुंदरियाँ ‘सन्देश’ दोहराती हैं – ‘माँ होना स्त्री की सबसे बड़ी उपलब्धि है।’’
अजीब विरोधाभास है कि ‘‘संस्कृति की सारी बहस स्त्री की ‘स्कर्ट’ की ऊंचाई-निचाई से तय होती रहती है, मगर सौंदर्य प्रतियोगिता में स्त्री अपनी ‘मर्जी’ से शामिल हो रही है। स्त्रियाँ मर्दों के बनाए विधान से बहार निकल रही हैं। उसे तोड़ रही हैं।’’ मगर सवाल है – यहाँ से आगे कहाँ जाएँगी ? रास्ता किधर है ?
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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