Vajashrava Ke Bahane

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Vajashrava Ke Bahane

Vajashrava Ke Bahane

395.00 295.00

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Author: Kunwar Narain

Availability: 5 in stock

Pages: 160

Year: 2024

Binding: Hardbound

ISBN: 9789357757058

Language: Hindi

Publisher: Bhartiya Jnanpith

Description

वाजश्रवा के बहाने

हिन्दी के अग्रणी कवि कुँवर नारायण का यह दूसरा खण्ड-काव्य है। अपनी सुदीर्घ सार्थक और यशस्वी रचना-यात्रा में उन्होंने अनेक बार हिन्दी कविता को प्रचलित पंक्तियों से उबार कर नये काव्यार्थ से समृद्ध किया है। आज से लगभग आधी सदी पहले प्रकाशित ‘आत्मजयी’ हिन्दी साहित्य में एक कीर्तिमान बन चुका है। ‘वाजश्रवा’ के बहाने अनेक समकालीन सन्दर्भों से जुड़ती हुई एक बिल्कुल नयी और स्वतन्त्र रचना है, जिसकी ‘आत्मजयी’ के परिप्रेक्ष्य में भी एक ख़ास जगह बनती है। इसमें आत्मिक और भौतिक के बीच द्वन्द्व न होकर दोनों के बीच समझौतों की कोशिशें हैं— इस तरह कि वे दोनों को समृद्ध करें न कि ख़ारिज। समुद्र में फैले छोटे-बड़े द्वीपों की तरह इन कविताओं का एक सामूहिक अस्तित्व है, साथ ही हर कविता की अपनी अलग ज़मीन, तट और क्षितिज भी एक लम्बे कालखण्ड में होनेवाले विभिन्न जीवनानुभवों और दृष्टियों की सूक्ष्म और मार्मिक अभिव्यक्ति का मन पर गहरा प्रभाव छूटता है। इस कृति में पिता-पुत्र के सम्बन्धों की स्मृतियाँ हैं जो क्रमशः प्रौढ़ होती हुई एक समावेशी जीवन-विवेक में स्थिरता खोजती हैं।

भाषा और शब्दों का कुशल संयोजन रचना के मूल कवित्व को अनुभव, अनुभूति और चिन्तन के कई स्तरों पर एक साथ सक्रिय रखता है। जहाँ एक ओर वह शब्दों की यथार्थपरकता को पकड़े रहता है वहीं दूसरी ओर उनके जादू को भी। कुँवर नारायण रचना में शिल्प का नया प्रारूप गढ़ते हुए भाषा का कई जगह पुनर्नवन करते हैं। कविता के गूढ़ अर्थों का यह विस्तार हमें आतंकित नहीं करता, बल्कि परिचित की सीमाओं में अपरिचित के लिए जगह बना कर एक ख़ास तरह से सचेत करता है। एक बृहत्तर जीवन-वस्तु से सामना कराती हुई यह रचना जीवन और काव्य दोनों के आशयों को नयी तरह विस्तृत करती है। समकालीन हिन्दी कविता में ‘वाजश्रवा के बहाने’ जैसे विरल काव्य का प्रकाशन निस्सन्देह एक आश्वस्तिपूर्ण घटना है।

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Binding

Hardbound

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2024

Pulisher

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