- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
वरुण के बेटे
सुविख्यात प्रगतिशील कवि-कथाकार नागार्जुन का यह बहुचर्चित उपन्यास बड़े-बड़े गढ़ों-पोखरों पर निर्भर मछुआरों की कठिन जीवन-स्थितियों को अनेकानेक अन्तरंग विवरणों सहित उकेरता है। लगता है, लेखक बरसों उन्हीं के बीच रहा है – वह उनकी तमाम अच्छाइयों-बुराइयों से गहरे परिचित है और उनके स्वभाव-अभाव को भी भली-भाँति पहचानता है। तभी तो वह खुरखुन और उसके परिवार को केन्द्र में रखते हुए भी मछुआरा बस्ती मलाही-गोंढ़ियारी के कितने ही स्त्री-पुरुषों को हमारे अनुभव का स्थायी हिस्स बना देता है। फिर चाहे वह पोखरों पर का बिजशोषक शक्तियों के विरुद्ध खुरखुन की अगुवाई में चलनेवाला संघर्ष हो अथवा मधुरी-मंगल के बीच मछलियों-सा तैरता और महकता प्यार। अजूबा नहीं कि कहीं हम स्वयं को खुरखुन की स्थिति में पाते हैं तो कहीं मधुरी-मंगल की दशा में।
वस्तुतः नागार्जुन अपने कथा-परिवेश को कहकर नहीं, रचकर उजागर करते हैं। एकपूरी धरती, एक पूरा परिवेश और फिर शब्दांकुरों की शक्ल में विकसित होती हुई कथा। इस सन्दर्भ में उनका यह उपन्यास एक अप्रतिम स्थान रखता है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
Reviews
There are no reviews yet.