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Description
वे आँखें
इस संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जो पूरे विश्वास के साथ कह सके, कि वह सुखी है। जो ऐसा कहता है, वह या तो जान-बूझकर झूठ बोलता है या फिर उसे समझ ही नहीं है कि सुख क्या होता है।
इस कथा-पुस्तक की केन्द्रीय विषयवस्तु यही है। अविनाश दा की कविताओं से शब्द की महत्ता का पाठ पढ़कर कथानायक जीवन की कथा कहने बैठता है जिसमें उसके पास-पड़ोस से लेकर दिल्ली-मुम्बई तक फैले पात्रों के दुःख-कर्म शामिल हैं। इतिहास जिस तरह आगे बढ़ता है, आदमी का जीवन भी छोटे रूप में उसी तरह ऊपर-नीचे होता हुआ बढ़ता रहता है। उसमें तरह-तरह के बदलाव आते हैं, कई बार तो ऐसे कि कुछ अन्तराल के बाद उनसे मिलो तो जैसे पहचानना ही मुश्किल हो जाता है।
अलग-अलग कथा-सूत्रों के माध्यम से बिमल मित्र यहाँ जीवन और साहित्य के रिश्ते पर, मनुष्य की विचित्र नियति पर, समाज के मुखौटों पर अलग-अलग कोणों से दृष्टिपात करते हैं। अविनाश दा, सत्य सुन्दर और मिसेज राय, अशेष दत्त, मुकुल राय जैसे पात्रों की इन कहानियों में जीवन के कई चित्र ऐसे हैं जो इस संसार के प्रति प्रेम भी जगाते हैं, मोह भी और वितृष्णा भी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Pulisher | |
Publishing Year | 2019 |
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