Ve Log

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495.00 375.00

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Author: Sumati Saxena Lal

Availability: 5 in stock

Pages: 184

Year: 2024

Binding: Hardbound

ISBN: 9788119014545

Language: Hindi

Publisher: Bhartiya Jnanpith

Description

वे लोग

अम्मा ने सिर उठा कर एक बार मेरी तरफ़ देखा था फिर मामा की तरफ़, “दद्दा, इन को अपने पास रख लो और अपने बच्चों की तरह पढ़ा लिखा कर इन्सान बना दो, नहीं तो वहाँ गाँव में रहते यह भी…” और उनकी बड़ी-बड़ी आँखों में आँसू भरने लगे थे । “अपनी तो झेल ली इनकी नहीं झेल पाऊँगी।” अम्मा जैसे मामा से भीख माँग रही हों।

वर्षों बाद चन्दर को मैं अपने साथ ले आयी थी-पढ़ा-लिखा कर इंसान बनाने के लिए। अम्मा अक्सर कहती थीं “बेटा तुमने और दद्दा ने तो हमें गंवई गाँव के श्राप से मुक्त कर दिया।”

आज सोचती हूँ कि अपने अन्तिम दिनों में अम्मा तो और अधिक श्रापग्रस्त थीं-उस अँधेरे गाँव में अकेली और परित्यक्त। शायद वे ज़िन्दगी की दौड़ में अपने बच्चों से बहुत पिछड़ चुकी थीं। इतनी लम्बी ज़िन्दगी वे गाँव में रह कर भी गाँव में अपने होने को नकारती रहीं। कितनी अजीब बात है कि जब उनके दोनों बच्चे शहर में सफल जीवन जीने लगे तब उनके हालातों ने पूरी तरह से उन्हें गाँव में पहुँचा दिया था। उनके पास सारे विकल्प ख़त्म हो चुके थे ।

ज़िन्दगी में सारी सम्भावनाओं के खत्म हो जाने पर खुद को कैसा लगता होगा। कैसा लगता होगा जब कोई सपना बचा ही न हो। तब शायद मन के काठ हो जाने के अलावा कुछ भी तो शेष नहीं रहता। मैं जानती हूँ कि अम्मा धीरे-धीरे काठ बन गयी थीं-घर की मेज़-कुर्सी, खिड़की दरवाज़ों की तरह।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Pages

Language

Hindi

Publishing Year

2024

Pulisher

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