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Description
वे थे वे हैं
कुबेरदत्त समय-समय पर संस्मरण भी लिखते थे जैसे रेखांकन बनाना उसका प्रियशौक था। इन्हें पत्रिकाओं में से ढूँढकर एकत्र किया तथा क्रम दिया श्याम सुशील ने। इन्हे पुस्तकाकार रूप में सुरक्षित करने की चिंताओं को कमलिनी संजोये रहीं। मेरे जिम्मे आया संपादन कार्य। इन संस्मरणों की भूमिका भी संस्मरण ही है ! अपने संस्मरणों की इस पांडुलिपि का नामकरण भी कुबेर का किया हुआ है-वे थे वे हैं। अब तो वह स्वयं भी ‘थे’ में सम्मिलित हो गया है और अपनी रचनाधर्मिता के बल पर ‘हैं’ में भी मौजूद है-रहेगा सदा !
कुबेर के ये संस्मरण उस की भाषा-निष्ठा, अंग्रेजों के प्रति कृतज्ञ भाव और कुल मिलाकर सृजन-संस्कृति के प्रति गहरी कृतज्ञता में डूबकर लिखे लेख हैं। इसमें कुबेर के अनुभव और सजग, सतर्क सोच- विचार हमें कुबेर के व्यक्तित्व का भी परिचय देते हैं। जैसे – “आचार्य किशोरीदास वाजपेयी को याद करना एक तरह से भाषा और उसको बरतने वाली लोकसत्ता को याद करना है, जो ज़रूरत पड़ने पर निजाम बदल देती है।” इतना ही नहीं कुबेर ने वाजपेयी जी को “महामानव, आधुनिक अभिनव-पाणिनी” कहकर कृतज्ञता ज्ञापित की है, जो अकेले कुबेर की नहीं जातीय चेतना के सामूहिक भाव को लिये है।
– बलदेव वंशी
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
Language | Hindi |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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