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Description
वेद मन्त्रों के देवता
प्रकाशकीय
लेखक श्री गुरुदत्त जी का परिचय देने की विशेष नहीं है। सदी में महर्षि स्वामी दयानन्द से प्रेरणा प्राप्त कर कई दिग्गज विद्वानों ने वेदान्वेषण को अपना जीवन समर्पित कर दिया था। पं० सातवलेकर, पं० विश्वबन्धु के नाम सर्वोपरि हैं। परन्तु श्री गुरुकत्त जी की विशेषता है सरल भाषा में विवेचना। ‘वेद और वैदिक काल’, ‘वेद प्रेवशिका’, ‘वेदों में इन्द्र’, ‘वेदों में सोम’ पढ़ें तो ऐसा लगता है मानो सृष्टि-रचना का रहस्य खोलकर सामने रखा जा रहा है।
श्री गुरुदत्त जी विज्ञान के विद्यार्थी होने से विश्लेषणात्मक बुद्धि रखते थे। इस पृष्ठ-भूमि पर उन्होंने वेदाध्ययन आरम्भ किया तो पाया वेदों में सृष्टि-रचना का इतिहास है तथा साथ ही अध्यात्म एवं जीवन-यापन सम्बन्धी ज्ञान भी भरा पड़ा है। केवल वेद मन्त्रों के अर्थ करने के रहस्य का ज्ञान होना आवश्यक है।
निरुक्ताचार्य यास्क एक स्थान पर लिखता है कि मन्त्रों का निर्वचन (अर्थ) करते समय तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए-(१) जब हम मानते हैं कि वेद एक ज्ञानवान् द्वारा (परमात्मा द्वारा) दिया ज्ञान है तो मन्त्रों में विरोधी अर्थ नहीं हो सकते। (२) अर्थ तर्क द्वारा सिद्ध हो सकने चाहिएँ तथा (३) जिस देवता (विषय) का वर्णन हो रहा हो, अर्थ उसके अनुरूप ही होंगे।
इन बातों के रहस्य को समझकर, अपनी विश्लेषणात्मक बुद्धि द्वारा श्री गुरुदत्त जी ने वेद मन्त्रों के अर्थ किए हैं। उनकी युक्तियुक्त विवेचना एक सामान्य शिक्षित व्यक्ति को भी प्रभावित करती है।
प्रस्तुत रचना के कुछ अंश ‘शाश्वत वाणी’ पत्रिका में धारावाहिक रूप में लगभग १५-१६ वर्ष पूर्व छप चुके हैं परन्तु पुस्तकाकार में सम्पूर्ण रूप में पहली बार प्रकाशित हो रही है। रचना की पाण्डुलिपि लगभग १५ वर्षों से कहीं रखी गई थी तथा उपलब्ध नहीं हो पा रही थी। जब मिली तो देखा कि इसका सम्पादन होना शेष है परन्तु हमारा दुर्भाग्य यह रहा कि सम्पादन के उपरान्त पाण्डुलिपि श्री गुरुदत्त जी को दिखाई नहीं जा सकी। वैसे सम्पादन वेद-विषयक उनकी सभी रचनाओं को ध्यान में रखकर किया गया है सम्भव है विवेचा में कहीं अस्पष्टता रह गई हो। इस पर भी भाव अत्यन्त स्पष्ट हैं।
– योगेन्द्र दत्त
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2000 |
Pulisher |
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