Vismrit Ke Garbh Mein

-19%

Vismrit Ke Garbh Mein

Vismrit Ke Garbh Mein

130.00 105.00

In stock

130.00 105.00

Author: Rahul Sankrityayan

Availability: 5 in stock

Pages: 120

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788122500462

Language: Hindi

Publisher: Kitab Mahal Publishers

Description

विस्मृति के गर्भ में

यदि मुझसे पहिले कोई कहता, कि तुम विद्याव्रत, प्राचीन इतिहास के अध्यापक, अपने पर्यटन के विषय में एक ऐसा ग्रन्थ लिखोगे, जो बहुत कुछ उपन्यास की भाँति होगा, तो मैं कदापि इस पर विश्वास न करता। मैंने कभी इसे सम्भव न ख्याल किया था, कि लोगों के सरल विश्वास को आकृष्ट करके, सत्यता और वास्तविकता के विषय में मैं ख्याति लाभ करूँगा। और वह आकृष्ट करने का ढंग क्या ? – यही, यदि असम्भव नहीं तो अयुक्त अवश्य, अनेक विचित्र घटनाओं को वर्णन करके, उन्हें सत्य स्वीकार कराने का प्रयत्न।

यद्यपि मुझे मित्र के प्राचीन इतिहास का अच्छा ज्ञान है, मैं वहाँ के प्राचीन अद्भुत कर्मकांडों से परिचित हूँ ? और उस अद्भुत पुरातन सभ्यता के आश्चर्यमय दिव्य चमत्कारों के विषय में भी पूर्ण परिचय रखता हूँ; तथापि मेरा विश्वास इन दिव्य चमत्कारों पर नहीं है। मैं पाठकों को उन्हीं बातों पर विश्वास करने के लिये कहूँगा, जिन पर कि मेरा अपना विश्वास है-अर्थात्, पवित्र गोवरैला ने स्वयं हम लोगों में से किसी पर भी कुछ प्रभाव डालना। और सचमुच यह मानना असम्भव है, कि एक पत्थर का जरा-सा टुकड़ा-कुछ तोला हरा चकमक-किसी प्रकार भी सरल मानव जाति के जीवन या भविष्य पर प्रभाव डाल सकता है। मेरी समझ में ऐसी प्रभावशाली सारी बातें घुणाक्षर न्याय से घटित होती हैं। किन्तु तो भी इसका ग्रहण-अग्रहण मैं पाठकों की रुचि पर छोड़ता हूँ।

स्वभावतः मैं एक शान्तिप्रिय, विद्याप्रेमी, और विद्यार्थी मनुष्य हूँ। अपने अन्वेषणों के सम्बन्ध में अनेक वार मैं नील नदी पर गया हूँ। तीन वार मेसोपोतामिया, एक वार फिलिस्तीन और यूनान, भी गया हूँ। मेरे हृदय में कभी जरा-सी भी इच्छा न होती रही, कि मैं किमी भयंकर पर्यटन में हाथ डालूँ। सचमुच-क्योंकि मैं चाहता हूँ कि आप मुझे मेरे व्यवहारों से जाँचें-मैं इसे स्वीकार करता हूँ कि मेरा हृदय दुर्बल है, अथवा दूसरे शब्दों में समझिये कि, मैं कायर हूँ।

हथियार के प्रयोग में मुझे जरा भी अभ्यास नहीं है। मैं बहुत ही दुबला-पतला और निर्बल हूँ इसका प्रमाण इसी से मिल सकता है, कि मेरी ऊँचाई पाँच फीट चार इंच और वजन बिल्कुल एक मन बारह सेर है। इन्हीं सब कारणों से मुझे अपनी कथा आरम्भ करने से पूर्व दो-चार शब्द भूमिका अथवा उपोद्घात की भाँति कहने की आवश्यकता पड़ी।

किसी-किसी समाज में, मैं मानता हूँ मेरी बहुत प्रसिद्धि है। किन्तु मनुष्यों की अधिकांश संख्या-विशेषकर वह लोग जो कि मेरी इस कथा को पढ़ेंगे-मेरे नाम को न जान सकेंगे। अतः मुझे इस बात को कहने में जरा भी संकोच नहीं, कि मैं कौन हूँ; क्योंकि मैं उस यात्रा में जरा भी श्रेय नहीं लेना चाहता; जो कि मेरे और मेरे साथियों के ऊपर, शवाधानी को अन्वेषण में, पड़ी थी। सचमुच मुझे उसमें कुछ भी श्रेय नहीं है। मैंने बिना जानेबूझे इस काम में हाथ डाला था। और जब मैंने अपने को खतरे से घिरा, कठिनाइयों मे परास्त, पर्यटक और पड़तालक के पद पर बैठाया जाता पाया, तो सच कहना हूँ, मैंने समझा कि, मैं इसके योग्य नहीं हूँ मैं सर्वथा इससे बाहर हूँ।

मेरे पास, अपने उन दोनों असाधारण वीर पुरुषों की प्रशंसा के लिये शब्द नहीं है; जो इन सारे ही संकट के दिनों में मेरे साथ थे। इन्हीं तीनों पुरुषों के कारण मैं जीवित बचा। दोनों ही, का मैं ऋणी हूँ, और ऐसा ऋण जिससे उऋण होना इस जीवन में मेरे लिये असम्भव है। कप्तान धीरेन्द्रनात ऐसे पुरुष हैं, कि जिनका सम्मान मैं हृदय से करने के लिए सर्वदा तैयार रहूँगा। उनकी हिम्मत, उनकी स्थिरमनस्कता-जो आफत के समय भी डगमग नहीं होती-उनकी आशावादिता और ईमानदारी, वह गुण है जिनके कारण मुझे, अपने ऐसे मित्र का गर्व है। और महाशय चाङ् ? मैं न व्यवहार कुशल मनुष्य हूँ, और न मानव प्रवृत्ति का वेत्ता; किन्तु तो भी मैं कह सकता हूँ, कि मैंने इस तरह का क्षिप्रचेता क्षिप्रनिर्णयकर्त्ता मनुष्य कभी नही देखा। उनका परिणाम निकालने का ढङ्ग लोकोत्तर था। अपनी यात्रा न उनकी कल्पना शक्ति, उनके बौद्धिक तर्क के चमत्कारों को देखने के बहुत से अवसर मुझे मिले। वह वैसे ही वीर थे, जैसे कि धीरेन्द्र और स्थूल होने पर भी थकना जानते ही न थे। यह मेरा सौभाग्य था, जो अभी उस महाप्रस्थान में कदम बढ़ाते ही यह दोनों महापुरुष मिल गये; मुझे यह सोचने में भी भय मालूम होता है, कि यदि यह दोनों व्यक्ति मेरे साथ न होते तो कैसे बीतती। निस्सन्देह मैं उस समय नुविया की मरुभूमि मैं नष्ट हो जाता, और कभी को मेरी सूखी अस्थियाँ गिद्धों और चील्हों द्वारा चुन ली गई होतीं।

भाग्य ने मुझे वह शक्ति न दी थी, कि मैं एक कर्मिष्ठ पुरुष के मार्ग पर चलता। मेरे पास हिम्मत नहीं, मेरे पास शरिारिक वल नहीं; और सबसे बढ़कर मेरे हृदय में वीरत्व प्रदर्शन करने की आकांक्षा नहीं। वाल्य ही से मैं निर्बल हूँ चश्माधारी, पतली छातीवाला, और टेढ़ी कमर रखता हूँ हाँ, एक सिर मुझे ऐसा मिला है, जो सम्पूर्ण शरीर की अपेक्षा बड़ा और इसीलिये वेढङ्गा मालूम होता है। स्कूल में, मैं एक प्रसिद्ध मेधावी विद्यार्थी था, मैंने बराबर इसके लिये अनेक पारितोषिक पाये; लेकिन क्रीड़ाक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये न मेरे में योग्यता ही थी, न इच्छा ही। जब मुझे कुछ-कुछ इतिहास का ज्ञान होने लगा, तभी से मुझे मिस्र के इतिहास से बड़ा प्रेम हो गया। यह भी मेरी खुश-किस्मती थी, कि मेरे पिता एक अच्छे धनिक पुरुष थे, इसलिये जीविकोपार्जन की मुझे कुछ भी चिन्ता न थी। आठ ही वर्ष की अवस्था में मैं पितृहीन हो गया। मेरी जायदाद का प्रबन्ध कोर्ट-आफ-वार्ड के हाथ में रहा; और जब बालिग हुआ, तो मैं ‘पनी सम्पत्ति का स्वामी हुआ। वह मेरी सीधी-सादी आवश्यकताओं से कहीं अधिक थी।

पढ़ना और पढ़ाना, इसके अतिरिक्त मेरे हृदय में कोई इच्छा न थी। अपनी आमदनी में से मुझे उतने ही खर्च की आवश्यकता थी, जो कि मेरे अध्ययन में, मेरे विद्याव्यसन में सहायक हो; और शेष बैंक मे सूद-मूल लेकर बराबर बढ़ रही थी। चालीस वर्ष तक अपने प्रिय विषय पर अविरामतया मैं परिश्रम करता रहा। जितना ही जितना मेरा ज्ञान बढ़ता जाता था, उतनी ही उतनी मेरी जिज्ञासा, मेरा विद्याप्रेम भी बढ़ता जाता था।

मैं विदेह-विश्वविद्यालय का प्रोफेसर, और नैपाल कालिज का प्रोफेसर हुआ था। मैं मिस्र-अन्वेषण-कोश की कमीटी का भी मेम्बर था और विदेह-विश्वविद्यालय का ऑनरेरी डी०सी०एल० भी। जब मैं पैंतीस ही वर्ष का था, उसी समय मुझे नालन्दा संग्रहालय का वर्तमान दायित्वपूर्ण पद मिला।

यह सब बातें मुझे इसलिये लिखनी पड़ी कि इस जगह वर्णन की जाने वाली घटनाओं को कोई मनगढ़न्त न समझ ले। उनको पता लग जाय, कि मेरे ऐसा प्रामाणिक और प्रतिष्ठित पुरुष वैसा करके कभी अपने पैरों में आप कुल्हाड़ी न मारेगा। मेरा काम यह नहीं, कि अपने छुट्टी के घण्टों में जो कुछ भी गप्प, कथा गढ़ मारूँ। वैज्ञानिक सर्वदा सत्य के प्रेमी होते हैं। मेरे ऊपर पड़ी हुई घटनायें न अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, न अधिक ही। यदि किसी को मेरे कथन पर सन्देह है, तो उसे मितनी-हर्पी के विचित्र नगर की यात्रा करनी चाहिये । वहाँ राजप्रासाद की उत्तर दिशा के उद्यान में वह सुन्दर और सौम्य रानी मिलेगी; जो उस विचित्र देश पर शासन करती है; और इससे भी अधिक उसे एक अद्भुत और उल्लेखनीय पुरुष की ममी (सुरक्षित शव) मिलेगी, जो एक समय हमारे पटना हाईकोर्ट का वकील था।

 

विषय सूची

  • थेबिस का राजकुमार सेराफिस; गोबरैला का प्रथम दर्शन; शिवनाथ जौहरी की रहस्यमयी हत्या
  • गोबरैला-मूर्ति, और धनदास जौहरी वकील से मेरा परिचय
  • शिवनाथ जौहरी की विचित्र यात्रा; मेरा अविचारपूर्ण निश्चय
  • ‘कमल’ के कप्तान धीरेन्द्रनाथ, और बीजक की चोरी
  • कप्तान धीरेन्द्र और महाशय चाङ् से घनिष्ठता
  • महाशय चाङ् से निवेदन
  • चाङ् की पहिली बाजी
  • चाङ् भी काहिरा को
  • काहिरा से सूची-पर्वत तक
  • ”वहाँ इस बालू की भूमि पर सूर्य भट्टे की भाँति धधकता है”
  • उपविष्ट लेखकों की सड़क
  • रथी, हमारी हिकमत
  • नील के देवता सेराफिस की भूमि में
  • मितनी-हर्पी में प्रवेश
  • सेनापति नोहरी
  • रा-मन्दिर, प्सारो का लौट आना
  • महारानी से वार्तालाप
  • काली घटायें
  • भयंकर तूफान
  • बक्नी का पहिला वार
  • उद्धार-मन्दिर का
  • चाङ् का अद्भुत साहस
  • शाबाश चाङ्
  • प्रासाद पर चढ़ाई
  • भीषण स्थिति
  • अन्तिम मोर्चा, विजय
  • उपसंहार

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Vismrit Ke Garbh Mein”

You've just added this product to the cart: