Visthapan Ka Sahityik Vimarsh
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विस्थापन का साहित्यिक विमर्श
आज पूरी पृथ्वी ‘ग्लोबल वार्मिंग’ की चपेट में है, जिसका प्रमुख कारण औद्योगीकरण भी है। जितनी मज़बूरी आधुनिक जीवन के लिए औद्योगीकरण है उससे अधिक जरूरी जीवन के लिए पर्यावरण है। यदि जीवन पर संकट उत्पन्न होगा तो किसी भी तरह के उद्योग की प्रासंगिकता समाप्त हो जायेगी। यह सन्दर्भ ग्रन्थ इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है कि औद्योगीकरण से उत्पन्न जो समस्या है वह जीवन के प्रति कितना भयावह है। पूँजीवाद एवं औद्योगीकरण के आविर्भाव के साथ विकास के अवसर, प्रकारान्तर से उसकी गति भी बढ़ी। नयी अर्थव्यवस्था पुरानी सामन्तवादी अर्थव्यवस्था से गुणात्मक रूप से भिन्न थी, क्योंकि इसमें एक ही जगह पर बहुसंख्यक व्यक्ति एक ही प्रकार का कार्य करते थे।
शनैः-शनै: उसके आसपास अन्य कार्य करने हेतु उपक्रम लगते गये और इस प्रकार उद्योगों का एक संकुल एक वृहत् क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से अस्तित्व में आया। स्पष्ट हैं कि ऐसे संकुल तभी विकसित हुए होंगे, जब उन भूखंडों, जहाँ पर उद्योग लगे होने, के स्वामी वहाँ से विस्थापित हुए होंगे। इन नवीन उद्योगों में कार्य करने हेतु श्रमिक निश्चित ही दूसरी जगहों से विस्थापित होकर ही आये होंगे। इन समस्याओं के कारण विशुद्ध विस्थापन के तथ्य को नहीं माना जा सकता। समस्याओ के लिए निश्चित ही कहीं-न-कहीं पूँजीवाद एवं औद्योगीकरण उत्तरदायी थे। इसलिए विस्थापन की समस्या की सम्यक विवेचना हेतु आवश्यक विस्थापन अपने आप में अत्यन्त सारगर्भित, बहुअर्थी अवधारणा है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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