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Description
विवाह की मुसीबतें
यह पुस्तक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के चिन्तनपूर्ण, लोकोपयोगी निबन्धों का श्रेष्ठ संकलन है। दिनकर जी के चिन्तन-स्वरूप का विस्मयकारी साक्षात्कार करानेवाले ये निबन्ध पाठक के ज्ञान-क्षितिज का विस्तार भी करते हैं। इन निबन्धों में जहाँ एक ओर विवाह, प्रेम, काम, नैतिकता और शिक्षा जैसे विषयों पर विद्वान कृतिकार का सन्तुलित दृष्टिकोण उद्घाटित होता है, वहीं दूसरी ओर लोकतंत्र, धर्म और विज्ञान तथा मूल्य-ह्रास जैसे ज्वलन्त प्रश्नों पर उनकी प्रगतिशील दृष्टि मार्गदर्शक की भूमिका निभाती है।
भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति-पद पर कार्य करते हुए दिनकर जी ने जो अनुभव किया, उसका लेखा-जोखा प्रस्तुत है ‘शिक्षा : तब और अब’ निबन्ध में इस चेतावनी के साथ कि ‘शिक्षा का स्तर अभी भी बहुत नीचा है। अगर वह और भी नीचे लाया गया तो बेकारों की फौज बढ़ेगी और उनकी फौज भी, जिन्हें कोई भी काम नहीं सौंपा जा सकता।’ इसी तरह ‘पुरानी और नयी नैतिकता’, ’लोकतंत्र : कुछ विचार’, ‘धर्म और विज्ञान’, ‘मूल्य-ह्रास के पच्चीस वर्ष’ निबन्धों में सारगर्भित विचार-सूक्तियाँ ही नहीं, एक प्रबुद्ध विचारक की सामयिक चेतावनी भी है।
ये निबन्ध राष्ट्रकवि दिनकर के व्यक्तित्व को भी समझने में सहायक सिद्ध होते हैं। समाज में अनंत काल से प्रेम के प्रति संतों, चिंतकों और शास्त्रकारों का व्यवहार पुलिस का-सा रहा है और उन्ही के भय से मनुष्य ने अपने चेहरे पर पवित्रता का नकाब लगाना मंजूर कर लिया, यद्यपि इस नकाब का उसे अभ्यास नहीं था। अथवा यों कहें कि यह नकाब जितने अच्छे सूत का है, उतने बारीक और महीन सूत आदमी की भीतरी जिंदगी में नहीं काते जाते।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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