- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
वृद्धावस्था का सच
घर से बेघर होकर वृद्धाओं तक पहुंचने वाले बेबस वृद्धों के मजूबूरी-भरे सफर की यह दास्तान कोई हवाई कयास नहीं, कोरी कल्पना या गप भी नहीं, बल्कि आज अपसंस्कृति के मारे अपाहिज होते हमारे समाज के कटु यथार्थ को झेलते, कराहते, नित-नित टूटते जीवनों की कड़वी दास्तान है।
इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है ? आज का युवावर्ग ? या समय से पीछे छूटते स्वयं वृद्ध ? या दोनों ? या शायद दोनों में से कोई नहीं-तो फिर कौन ? इसका जवाब कोई भी एक शब्द या वाक्य में नहीं दे सकता। यह नित्य विकृत होती सामाजिक- सांस्कृतिक व्यवस्था के थपेड़े में फंसी युवा और वृद्ध पीढ़ियों की दारुण गाथा है और इस पर मानवीय संवेदना के साथ गहन विचारों को प्रस्तुत करने वाली लेखिका लंबे अरसे तक अत्यंत निकट से उनको समझती रही हैं।
उन्होंने बड़े ही अर्थ-गांभीर्य के साथ जो बिंदु प्रस्तुत किए हैं। वे समाज और युवावर्ग के लिए तो विचारणीय है ही-चौथेपन के शिकार एवं वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी विशेष रूप से उपयोगी एवं चिंतनीय हैं।
हम इस विश्वास के साथ हिंदी में पहली बार वृद्ध नागरिकों की समस्याओं पर यह पुस्तक प्रस्तुत कर रहे है कि यह एक विकट मानवीय समस्या के लिए रचनात्मक समाधान की भूमिका बनाएगी !
अनुक्रम
वृद्धावस्था का सच
★ कहानी वृद्धावस्था की
★ कैसी है आज की नारी : समाधान की अधिष्ठात्री !
★ वृद्धावस्था : एक सामाजिक समस्या ?
★ वृद्ध समाज पर बोझ तो नहीं !
★ काश वे दिन लौट पाते
★ वृद्धावस्था : एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण
० युवा पीढ़ी की सोच
० वृद्धावस्था की हठधर्मिता
वृद्धाश्रमों की परिकल्पना
★ वृद्धाश्रमों : जीवन का कैसा पड़ाव ?
★ वृद्धाश्रमों का यथार्थ
पीड़ा के कुछ साक्ष्य
★ किसी ने तो सोचा
★ ‘मैंने तो उन्हें गोद में खिलाया है !’
★ ‘मैं मां हूं न !’
★ घर तो घर ही होता है
★ वृद्धों की देखभाल : समाज बनाम सरकार
★ कैसे हों वृद्धाश्रम : कुछ सुझाव
Additional information
Binding | Hardbound |
---|---|
Authors | |
ISBN | |
Pages | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.