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Description
यथासमय
हिन्दी के प्रमुख व्यंग्यकार शरद जोशी के साहित्यिक अवदान से भला कौन परिचित नहीं है। व्यवस्था तन्त्र में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा आम आदमी को ‘बोनसाई’ बनानेवाली सत्ता-संस्कृति के विरुद्ध वे लगभग जेहादी स्तर पर आजीवन संधर्षरत रहे।
शरद जोशी अपने सहज और बोलचाल के गद्य में ऐसी व्यंजना भरते हैं जो पाठक के मन मस्तिष्क को केवल झकझोरती नहीं, एक नयी सोच भी पैदा करती हैं। वाकई उनके व्यंग्य के तीर’ होते हैं, वे चाहे फिर ‘बैठे ठाले’ लिखें या ‘किसी बहाने’ कुछ लिख दें। इनमें सामाजिक विसंगतियों पर एक रचनाकार की तीखी निगाह है, और इसीलिए उनकी लेखनी समाज मे यंत्र तंत्र सर्वत्र फैले भ्रष्टाचार, शोषण, विकृति और अन्याय पर जमकर प्रहार करती है और सोचने के लिए बाध्य करती है।
भारतीय ज्ञानपीठ शरद जोशी के कई व्यंग्य-संग्रह प्रकाशित कर चुका है, जिनकी पाठकों द्वारा भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है।
‘यथासमय’ शरद जी के अप्रकाशित लेकिन महत्त्वपूर्ण व्यंग्यों का संग्रह है, जिसे बड़े ही जतन से सँजोया गया है। पूर्व प्रकाशित संग्रहों से कुछ भिन्न और नये विषयों के साथ नये शिल्प और तेवर की छवि आपको इसमें मिलेगी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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