- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
यह दुख : यह जीवन
अनुक्रम | |||
कहानी | 9 | ||
बेझिझक | 10 | ||
चिथड़ा-चिथड़ा ये मन | 11 | ||
खण्डित बांग्लादेश | 12 | ||
कत्थई किताब | 14 | ||
गौरी नहीं रही | 15 | ||
कम्पन-1 | 17 | ||
फूस की लड़की | 18 | ||
झुकाव | 19 | ||
लज्जा, 7 दिसम्बर, ’92 | 20 | ||
पानी में तैरना | 21 | ||
कम्पन-2 | 22 | ||
बदनसीब | 23 | ||
फिर देखेंगे | 24 | ||
पुरुषोत्तम | 26 | ||
कम्पन-3 | 27 | ||
मसजिद-मन्दिर | 28 | ||
चाह | 29 | ||
कम्पन-4 | 30 | ||
इसराफिल को बुखार है | 31 | ||
सतीत्व | 32 | ||
धुआँ | 33 | ||
जलपर्व | 34 | ||
नींद उड़ानेवाली | 35 | ||
मज़ार | 40 | ||
समारोह | 41 | ||
धोखा | 42 | ||
उद्यान-सुन्दरी | 43 | ||
जरा ठहरो | 46 | ||
अकल्याण | 47 | ||
चाबुक | 49 | ||
विसर्जन | 50 | ||
घर चलोगे सुरंजन ? | 52 | ||
कम्पन-5 | 54 | ||
खलिहान | 55 | ||
निर्भय | 56 | ||
बाँसुरी | 57 | ||
पुरुषों की दान-दक्षिणा | 58 | ||
कम्पन-6 | 59 | ||
दुःसह दुःख | 60 | ||
गलतफ़हमी | 61 | ||
विष और विषाद में बीतता है पूरा दिन | 62 | ||
दुखियारी लड़की | 64 | ||
ऐसी कोई कसम नहीं दी | 66 | ||
कम्पन-7 | 67 | ||
7 मार्च, 497 | 68 | ||
बादल और चाँद की आँख-मिचौली | 69 | ||
पिता, पति, पुत्र | 71 | ||
इतना अहंकार भला क्यों ? | 72 | ||
कम्पन-8 | 74 | ||
धूसर शहर | 75 | ||
मृत्युदण्ड | 78 | ||
मनुष्य यह शब्द मुझे बहुत उद्वेलित करता है | 80 | ||
पराधीनता | 82 | ||
कम्पन-9 | 84 | ||
छोड़ गये हो मुझे, देखती हूँ, एक क़दम भी आगे नहीं बढ़े | 85 | ||
हाथ | 86 | ||
नूरजहाँ | 87 | ||
अस्वीकार | 88 | ||
धर्मवाद | 89 | ||
प्ले ब्वॉय | 91 | ||
कम्पन-10 | 92 | ||
ग़रीबी | 93 | ||
प्यार की कोई उम्र नहीं | 95 | ||
प्रिय कलकत्ता | 96 | ||
अगर तुम आओ | 100 | ||
अंतर | 101 | ||
जाऊँगी, अवश्य जाऊँगी | 102 | ||
जो पति प्रेमी नहीं, उसे… | 104 | ||
कम्पन-11 | 105 | ||
अवगाहन | 106 | ||
यात्रा | 107 | ||
बीबी आयशा | 108 | ||
प्यार में जी नहीं रमता आजकल | 109 | ||
तोप दागना | 110 | ||
दीर्घ पथ पर जाऊँगी | 111 | ||
कीड़े-मकौड़ों की कहानी | 112 | ||
अनुचरी | 114 | ||
प्रेरित नारी | 115 | ||
बहुगमन | 116 | ||
निर्बोधों का देश | 117 | ||
प्रश्न | 118 | ||
1500 बंगाब्द | 119 | ||
कवि निर्मलेन्दु गुण | 122 | ||
पानी में तिरना | 124 | ||
चाहत | 125 | ||
बहुत देखा है | 127 | ||
समझौता | 128 | ||
साथी | 129 | ||
लड़कीपन | 130 | ||
जीवन कभी बाएँ हाथ में, कभी दाएँ में | 133 | ||
टापू | 135 | ||
ईशनिन्दा-क़ानून | 137 | ||
इस घर से उस घर | 139 | ||
पिता को पत्र | 141 |
कहानी
निहायत सीधे-सादे दीख पड़नेवाले एक लड़के ने
एक दिन मुझसे कहा-मैं बहुत दुखी हूँ
उसके घने बालों को उँगलियों से सहलाते हुए
मैंने कहा-मैदान में बरस रही है सफ़ेद चाँदनी
चलो भीगें
बादलों से घिरी भोर में
किसी अरण्य की सैर को चलें
शीतलक्षा में उलटी देह तैरें।
लड़के ने कहा-मुझे भूख बहुत लगती है आजकल
मैंने उसे खाने को दिया सरसों में पका हिल्सा
कज़री मछली का कोफ्ता, झींगा की मलाईकरी
और फिर साबुत मुर्गा रोस्ट
खाना खाने के बाद बढ़ाया-तबक लगा पान।
खाना खत्म हुआ, रात में हम भीगते भी रहे चाँदनी में
सुबह अरण्य को भी किया गया पार, लड़का भी हुआ खुश
भरा पेट और मन लेकर दोपहर को
उसने कहा-अच्छा तो अब मैं चलूँ।
फिर एक दिन अचानक मैंने देखा
पड़ोस की किसी दूसरी लड़की को वह
अपने दुःख और भूख के बारे में बता रहा है
और वह किशोरी उसे पास बैठकर खिला रही है खाना।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2013 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.