Zakham Phool Aur Namak

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Zakham Phool Aur Namak

Zakham Phool Aur Namak

200.00 150.00

In stock

200.00 150.00

Author: Garima Shrivastava

Availability: 5 in stock

Pages: 216

Year: 2018

Binding: Paperback

ISBN: 9789385450600

Language: Hindi

Publisher: Nayeekitab Prakashan

Description

जख्म फूल और नमक

भारत सीधे सीधे विश्वयुद्ध में शामिल नहीं हुआ था इसके बावजूद प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति होते-होते यहाँ की आम जनता में औपनिवेशिक शासन के प्रति गहरा असंतोष व्याप्त हो गया था। युद्ध के आर्थिक बोझ, कीमतों में वृद्धि, अनाज की कमी ने आम भारतीय को परेशान कर दिया था। युद्ध के व्यापक आर्थिक परिणाम हुए, साथ ही युद्ध में लाखों भारतीय सैनिक मारे गए। जर्मन, आस्ट्रिया और रूस में युद्ध के बाद क्रांतिकारी परिवर्तन एवं जनक्रांतियों ने भारतीय मानस में अपनी पहचान बनायी, जिसमें मुद्रण एवं संचार साधनों, विशेषकर अख़बारों ने बड़ी भूमिका निभाई, अनुमान है कि लगभग दस लाख भारतीय सैनिकों ने यूरोपीय, भूमध्यसागरीय और मध्यपूर्व के युद्ध क्षेत्रों में अपनी सेवाएँ दी थीं, जिनमें से कुल 62,000 सैनिक मारे गए और लगभग 67,000 सैनिक घायल हो गए। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान कुल मिलाकर 74,187 भारतीय सैनिक हताहत हुए थे।

इसी समय जबकि विश्वयुद्ध के प्रभाव से संभवतः किसी भी संवदेनशील रचनाकार की संवेदना अछूती न रह सकी, देश प्रेम के भाव का जोर पकड़ना और स्वाधीनता आंदोलन के बहुआयामी पक्ष को प्रेमचंद की रचनाओं में देखा जा सकता है सन् 1917 में ‘वियोग और मिलाप’ शीर्षक कहानी में पहली बार भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का प्रत्यक्ष यथार्थ चित्रण मिलता है। प्रेमचंद कहानियों के शीर्षकों को लेकर चौतन्य थे, जैसे वे हिन्दी में धनपतराय नहीं प्रेमचंद नाम से लिखते थे वैसे ही कहानी के शीर्षक से औपनिवेशिक सत्ता के सामने पशेमां नहीं होना चाहते। इस कहानी में तिलक और ऐनी बेसेंट द्वारा समर्थित ‘होमरूल’ और ‘स्वदेशी आन्दोलन’ का खुला पक्ष लिया गया जो, प्रेमचंद की अपने समय और समाज के प्रति रचनात्मक प्रतिबद्धता को बताती है। ‘होमरूल आन्दोलन’ के दौरान पिता-पुत्र के बदलते संबंध की पड़ताल करती है। 1921 के दशक में लिखी गई हिंदी कहानियों में समकालीन राजनीतिक घटनाओं जैसे ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’, ‘दांडी यात्रा’ की अभिव्यक्ति बड़े जोर-शोर से देखने को मिलती है, 1926 में प्रकाशित ‘प्रेम द्वादशी’ की भूमिका में प्रेमचंद ने लिखा था- “हम पराधीन हैं, लेकिन हमारी सभ्यता, पाश्चात्य सभ्यता से कहीं ऊँची है। यथार्थ पर निगाह रखने वाला यूरोप हम आदर्शवादियों से जीवन-संग्राम में बाजी भले ही ले जाय, पर हम अपने परम्परागत संस्कारों का आधार नहीं त्याग सकते। साहित्य में भी हमें अपनी आत्मा की रक्षा करनी ही होगी। हमने उपन्यास और गल्प का कलेवर यूरोप से लिया है, लेकिन हमें इसका प्रयत्न करना होगा कि उस कलेवर में भारतीय आत्मा सुरक्षित रहे।”

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2018

Pulisher

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