

Zara Si Roshani

Zara Si Roshani
₹120.00 ₹100.00
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Author: Ravinder Kaliya (रवीन्द्र कालिया)
Pages: 120
Year: 2002
Binding: Hardbound
ISBN: 9788180310027
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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जरा सी रोशनी
रवीन्द्र कालिया ने साठ के दशक में सिर्फ एक दिन, ‘नौ साल छोटी पत्नी’, ‘बड़े शहर का आदमी’ और ‘काला रजिस्टर जैसी कहानियों से शिल्प और संवेदना दोनों स्तरों पर हिन्दी कहानी की परंपरा को रूमान और भावुकता के दलदल से बाहर निकाल कर उसे यथार्थ की ठोस जमीन पर खड़ा होने में मदद की थी। तब से अब तक साहित्य और समाज के साथ-साथ कथाकार की संवेदना भी निरंतर विकास और परिष्कार की प्रक्रिया में रही है, इसका सबूत इस ताजा संग्रह की कहानियाँ हैं।
रवीन्द्र कालिया की ये नयी कहानियाँ मनुष्य की जिजीविषा, उसके संकल्प और अदम्य विसंगतिबोध को अपना विषय बनाती हैं और विलक्षण कलात्मकता और अचूक राजनीतिक दृष्टि के साथ उनका निर्वाह करती हैं। इन कहानियों के बच्चे, बूढ़े, युवक, युवतियाँ यहाँ तक भी पशु-पक्षी और पौधे भी कथाकार की आत्मा का स्पर्श पाकर मानवीय उद्यम और नियति में साझा करने वाले प्रतिनिधि चरित्र बन जाते हैं। इस नजरिये से सबसे उल्लेखनीय कहानी ‘सुंदरी’ है। सुंदरी नाम की घोड़ी एक दुर्घटना में अपनी एक आँख गँवा देने के बाद विवाह जैसे मांगलिक अवसर पर नाचने की पात्रता खो देती है, लेकिन इसे अपनी नियति मानने से इंकार कर देती है।
शुभ और अशुभ में यकीन करने वाला मानव समुदाय और उसे बेहद प्यार करने वाला उसका मालिक जहीर जो खुद भी उसी दुर्घटना में एक आँख गँवा बैठा है, अपनी व्यावहारिकता के चलते उसके हठ का कारण नहीं समझ पाता लेकिन जहीर के बच्चे अपनी अंतश्चेतना में सुन्दरी के निकट होने के कारण इसे समझ जाते हैं। अनेक स्तरों पर बुनी गई यह कहानी सहज ही पशु-पक्षियों पर लिखी गई, विश्व साहित्य की अविस्मरणीय कहानियों में रखी जा सकती है। एक और कहानी ‘गौरैया’ है जो कथाकारके सहज मानवीय राग-विराग से गुजरती हुई अचानक हमारे दौर की सांप्रदायिक कुटिलता का पर्दाफाश करने वाली सशक्त कहानी बन जाती है। बोगेनविलिया शीर्षक कहानी का नन्हा सा पौधा आजाद हिन्दुस्तान के अमानवीय विकास के शिकार करोड़ों लोगों की पीड़ा को हमारी संवेदना तक पहुँचाने का माध्यम बनता है । दूसरी तरफ एक ‘होम्योपैथी कहानी’, ‘बुढ़वा मंगल’ और रूप की रानी चोरों का ‘राजा’ जैसी कहानियाँ हैं।
इनमें पहली कहानी एक उपभोक्तावादी समाज में ठीक-ठाक कमाई कर रहे एक युवक और युवती की है जो परिस्थितिवश अपने स्वाभाविक आवेगों का गला घोंटने पर विवश हैं। ‘डाक्टर और मरीज’ की भूमिका को अनेक कोणों में दिखाने वाली इस कहानी को हमारे दौर की एक यथार्थवादी प्रेम कहानी भी कहा जा सकता है। ‘बुढ़वा मंगल’ सिर्फ एक साधारण बूढ़े की असाधारण जीवनाकांक्षा की कहानी नहीं है, बल्कि इसमें स्वाधीनता पूर्व की तथाकथित त्यागी और बलिदानी पीढ़ी का रहस्य भी उजागर हुआ है। जबकि ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ में बिल्कुल ताजा सामाजिक-राजनीतिक हालात का जायजा लिया गया है।
रवीन्द्र कालिया की ये कहानियाँ साधारण स्थितियों, घटनाओं और चरित्रों की असाधारणता को रेखांकित करती हैं और हमारी संवेदना पर दस्तक देने के साथ हमारी विचार शक्ति और कल्पना को उकसाकर उन्हें हल्की सी चुनौती भी देती हैं। इसी प्रक्रिया में ये हमें संस्कारित करती हैं और मनुष्य की ताकत पर हमारे विश्वास को और मजबूत करती हैं।
– कृष्णा मोहन
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2002 |
Pulisher |
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