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Description
ज़िह्न में कुछ शेर थे
संदल गज़ल को गज़ल की तरह जीने में माहिर हैं। गम में खुशियाँ तलाशते शेर, जिंदगी जीने का साहस बिखेरते देखे जा सकते हैं। समाज में बिखरे तमाम विद्रूपों को चाक पर डाल कर एक अलग अंदाज़ में, एक नये सूरत में बखूबी परोसने की कला देखने लायक है। संकेतों और प्रतीकों में छलकते इंसानी दर्द को कागज़ पर हू-ब-हू उकेरने और सामाजिक कुरीतियों पर मुस्कराते हुए प्रहार करने की कला सीखने लायक है। आने वाला वक्त इन्हें सच्ची शायरी के लिए जानेगा।
— ललित कुमार सिंह, पटना, बिहार
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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