Gana Chahta Patjhad

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Gana Chahta Patjhad

Gana Chahta Patjhad

195.00 150.00

In stock

195.00 150.00

Author: Nandkishore Acharya

Availability: 5 in stock

Pages: 128

Year: 2010

Binding: Hardbound

ISBN: 9789350004548

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

गाना चाहता पतझड़

आचार्यजी की ये कविताएँ ध्रुपद गायन शैली का महीन ग्राफ़ांकन हैं, जहाँ कुछ बीज शब्द और बीज बिम्ब ‘तोम-तनतन, तोम-तोम तन-तन’, भाव से बार-बार लौटते हैं – दूरस्थ स्मृतियों की साँकल खटकाने ! दरवाज़ा चरमराकर आधा खुलता है, आधा नहीं खुलता। अवचेतन के झुटपुटे की ये कविताएँ एक धीरोदात्त प्रेम की कंठावरुद्ध, अस्फुट अभिव्यक्तियाँ भी जान पड़ती हैं। पतझड़ चाहता है गाना, पर उससे गाया नहीं जाता, भीतर धूल का बगूला-सा उठता है और जीभ किरकिरा जाती है : ‘डू आइ डेयर डिस्टर्ब द युनिवर्स’ का सहज संकोच कभी प्रूफ्लॉक की याद दिलाता है, कभी हैमलेट की, और बाइबिल के पहले शब्द की पूरी इयत्ता अपनी समस्त अनुगूँजों के साथ उजागर होती है।

आचार्य की प्रेमकविता में मेटाफ़िजिकल बाँकपन तो होना ही चाहिए। अंतरपाठीय संवाद यहाँ पूरे रंग-रुतबे में उजागर हैं – ख़ासकर ‘शबे-फ़िराक़’ वाली कविता में। कुछ कविताएँ अपने अर्किटाइपल बिम्बों में ‘सॉन्ग्स ऑफ इन्नोसेंस’ का समां रचती हैं। प्रेम आपके भीतर ‘सॉन्ग्स ऑफ इन्नोसेंस’ न जगाए तो वह कैसा प्रेम, कहाँ का प्रेम।

दरअसल हम एक ऐसे समय के नागरिक हैं जब हमारी ख़ुद से बातचीत बंद हो गई है मानो हम खुद से रूठे हुए, मुँह फुलाए हुए बैठे हैं ! बैठे हैं ? या कि लगातार दौड़ रहे हैं ? हमारे वजूद का एक हिस्सा इस अनन्त दौड़ में शामिल है, दूसरा थककर बीच रास्ते धम्म बैठ गया है, बैठकर सोच रहा है कुछ-कुछ : सर झुकाए, सर पर हाथ धरे। उसी सोच से ये कविताएँ फूटी हैं। जैसे एक अणु और दूसरे के बीच अंतरआणविक स्पेस होता है, शब्दों के बीच थोड़ा-सा फ़ासला होना चाहिए और लोगों के बीच भी ताकि स्वर्ग की हवा बीच से आए-जाए ! अँगरेज़ी में जिसको ‘ब्रीदिंग स्पेस’ कहते हैं – उससे भरी है आचार्यजी की कविता। उसमें लद्दाख का सन्नाटा पसरा पड़ा है, बीच-बीच याक के गले की घंटियाँ सुनाई देती हैं और प्रार्थना पताकाओं की सरसराहट भी।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2010

Pulisher

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